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पत्र १०
७3
ए
सुविधि जिणेसर पाय नमीने
शुभ करणी एम कीजे रे, अति घणो उलट अंग धरीने
प्रह उठी पूजीजे रे... सुविधि. द्रव्य-भाव शुचि-भाव धरीने
हरखे देहरे जइये रे, दह तिग, पण अहिगम साचवतां
एक मना धुरि थइए रे... सुविधि. कुसुम, अक्षत, वरवास, सुगंधि
धूप दीप मन साखी रे, अंगपूजा पण भेद सुणी इम
___ गुरुमुख आगम भाखी रे... सुविधि. एहनु फल दोय भेद सुणी जे
__ अनंतर ने परंपर रे, आणा-पालण चित्त प्रसन्नी
मुगति सुगति सुरमंदिर रे.... सुविधि. फूल अक्षत वर धूप पइवो
गंध नैवेद्य फल जल भरी रे, अंग अग्र पूजा मली अडविध
भावे भविक शुभ गति वरी रे... सुविधि. सत्तर भेद, एकवीस प्रकारे
अष्टोत्तर शत भेदे रे, भावपूजा बहुविध निरधारी
दोहग - दुर्गति छेदे रे... सुविधि. तुरिय भेद पडिवत्ति पूजा
___ उपशम खीण सयोगी रे, चढण पूजा इम ‘उत्तरज्झयणे'
भाखी केवल योगी रे... सुविधि.
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