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पत्र ६
४४ अन्तरात्मा का समर्पण चाहिए। अन्तरात्मा बनकर, परमात्मा से प्रीति बाँधनी चाहिए। प्रीति भक्ति पैदा करेगी। भक्तिभाव शरणागति का स्वीकार करवायेगा। शरणागति समर्पण करवायेगी। समर्पण से परमात्मदशा प्राप्त होती है।
'हे सुमतिनाथ भगवंत! आपके अचिंत्य प्रभाव से मेरी आत्मा अन्तरात्मा बने। मेरी अन्तरात्म-दशा स्थिर बने। स्थिर बनी अन्तरात्मदशा में आप प्रतिबिंबित बनो...., यही मेरी प्रार्थना है।
चेतन, समर्पण का रहस्य तू समझना | पुनः-पुनः इस स्तवना का चिंतन करना.... और समर्पण के मार्ग पर प्रयाण करने की तैयारी करना! कुशल रहे-यही कामना,
- प्रियदर्शन
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