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पत्र ५
३६ __ आपको मेरे ऊपर कृपा बरसानी होगी। आपको ही मेरे ऊपर अचिन्त्य अनुग्रह करना होगा। आपके दर्शन के लिए आपको ही मेरे प्रति दया करनी होगी...| मेरे हृदय की तड़पन तो देखो...मेरी व्यथा-वेदना तो देखो...। क्या आप करूणा के सागर नहीं हैं? आपके पास पहुँचने का मार्ग मैं नहीं जानता हूँ...अनन्त आकाश में कोई मार्ग नहीं दिखता है। मैं आपके विरह में व्यथित हूँ...क्या आप नहीं जानते? तो आपके पास खींच लो मेरे नाथ...! आपकी कृपा के बिना, मेरे पंगु प्रयत्नों से तो मैं आप तक कभी नहीं पहुँच पाऊँगा।'
चेतन, परमात्मा की कृपा की कितनी महिमा कवि ने बताई है! कृपा के पात्र बनने के लिए जीवन में प्रयत्न करना चाहिए। जिस किसी को थोड़े क्षणों के लिए भी परमात्मा का ध्यान लग जाता है, वह कभी न कभी कृपापात्र बनेगा।
तू परमात्मा की कृपा का पात्र बने-यही मंगल कामना । १४-३-८४ विजवाड़ा (आंध्र)
- प्रियदर्शन
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