________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पत्र २५
२३२ स्थापित किया है। 'षट्दर्शन जिन अंग भणीजे....' कह कर जैनदर्शन की विशालता का परिचय दिया है। 'कर्मबंध' को लेकर प्रकृति-स्थिति-रस और प्रदेश की भी चर्चा यहाँ की गई है। निश्चय नय और व्यवहारनय की समतुला बताकर मोक्षमार्ग का स्पष्ट दर्शन कराया है।
श्री आनन्दघनजी के जीवन के विषय में, उनकी काव्यरचनाओं के विषय में और इस चौबीसी के विषय में भिन्न-भिन्न विद्वान् महानुभावों ने बहुत कुछ लिखा है। कुछ मंतव्यों के साथ मतभेद होते हुए भी, सबने आनन्दघनजी के प्रति गहरी श्रद्धा व्यक्त की है। सभी ने उनकी चौबीसी की, पदों की, मुक्त कंठ से प्रशंसा की है।
जिनशासन की ज्ञानज्योति को प्रसारित करनेवाले, जिनशासन के प्रति लोगों का आदरभाव बढ़ानेवाले.... अन्तरात्मदशा के धनी ऐसे श्री आनन्दघनजी के चरणों में भाववंदना करते हुए, इस विवेचना में उनके आशय से कुछ भी विपरीत लिखा गया हो.... तो मैं नतमस्तक होकर क्षमायाचना करता हूँ | जय वीतराग! फाल्गुन शुक्ला-१०
- प्रियदर्शन गदग [कर्नाटक
For Private And Personal Use Only