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पत्र १५
११६ हार्दिक ही होती है। हृदय में जब प्रेम जागृत होता है, तब भक्ति हो ही जाती है। प्रीति, परमात्मा का स्मरण और दर्शन करवाती है। प्रीति परमात्मा का स्पर्शन करवाती है, यानी पूजन करवाती है और प्रीति ही, परमात्मा की आज्ञा का पालन करने के लिये प्रेरित करती है।
परमात्मा की आज्ञा का पालन करना कितना मुश्किल होता है, यह बात बताते हुए कवि कहते हैं : 'धार तलवारनी सोहिली, दोहिली चौदमा जिन तणी चरणसेवा'
तलवार की तीक्ष्ण धार पर चलना सरल [सोहिली] है, परन्तु चौदहवें तीर्थंकर अनन्तनाथ की आज्ञाओं का पालन [चरण सेवा] करना मुश्किल है। चूँकि आज्ञापालन करने के लिए जीवन बदलना पड़ता है। विचारों को, वाणी को और शरीर के क्रिया-कलापों को बदलना पड़ता है। मुश्किल होता है, जीवन-परिवर्तन! कवि कहते हैं : धार पर नाचता देख बाजीगरा, सेवना-धार पर रहे न देवा!
तलवार की धार पर खेल करनेवाले जादूगर तो दुनिया में कई दिखायी देते हैं! परमात्म-आज्ञा की धार पर खेलना तो नहीं, चलना भी नहीं, खड़ा रहना भी मुश्किल होता है। आज्ञापालन की धार पर टिकने नहीं देते हैं भीतर के काम-क्रोधादि शत्रु।
यह बात ऐसे मनुष्यों के लिये कही गई है कि जिनके हृदय में परमात्मा के प्रति दृढ़ अनुराग नहीं जन्मा है। परमात्मप्रेमी के लिये आज्ञापालन मुश्किल नहीं होता है। परमात्मप्रेमी तो पहले परमात्मा की आज्ञाओं को अच्छी तरह समझेगा। आज्ञाओं का मर्म समझेगा और तदनुसार पालन करेगा। जो लोग परमात्मा की आज्ञाओं का मात्र शब्दार्थ समझते हैं, परमार्थ नहीं समझते हैं, वे लोग सही रूप में परमात्मा की आज्ञाओं का पालन नहीं कर सकते हैं। यहाँ श्री आनन्दघनजी ऐसे अपूर्ण ज्ञानी लोगों की अपूर्ण समझदारी के कुछ नमूने बताते हैंएक कहे सेविये विविध किरिया करी, फल अनेकान्त लोचन न देखे' ___ जिनाज्ञा का परमार्थ नहीं जाननेवाले [वे खुद यह मानते हैं कि हम परमार्थ जानते हैं!] कुछ लोग कहते हैं कि 'विविध प्रकार की धर्मक्रिया करना ही जिनाज्ञा का पालन है। वही परमात्मा की सेवा हैं।
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