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पत्र १५
धार तलवारनी सोहिली, दोहिली चउदमा जिनतणी चरणसेवा, धार पर नाचता देख बाजीगरा, सेवना-धार पर रहे न देवा....
धार...
एक कहे सेवी विविध किरिया करी, फल अनेकान्त लोचन न देखे, फल अनेकान्त-किरिया करी बापड़ा, रडवड़े चारगतिमांहे लेखे
गच्छना भेद बहु नयण निहाळतां, तत्त्वनी वात करतां न लाजे, उदरभरणादि निज कार्य करतां थकां, मोह नडिया कलिकाल राजे
वचन-निरपेक्ष व्यवहार जूठो कह्यो, वचन - सापेक्ष व्यवहार साचो, -निरपेक्ष व्यवहार संसारफल, सांभली आदरी कांई राचो
वचन
११५
धार...
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धार...३
धार... ४
देव-गुरु-धर्मनी शुद्धि कहो किम रहे, किम रहे शुद्ध श्रद्धान आणो, शुद्ध श्रद्धा व सर्व किरिया करे, छार पर लींपणु तेह जाणो
धार... ५
पाप नहीं कोई उत्सूत्रभाषण जिस्यो, धर्म नहीं कोई जग सूत्र सरिखो, सूत्र - अनुसार जे भविक किरिया करे, तेहनुं शुद्ध चारित्र परखो
धार...६
एह उपदेशनो सार संक्षेपथी, जे नरा चित्तमां नित्य लावे, ते नरा दिव्य बहु काल सुख अनुभवी, नियत आनन्दघन-राज पावे
धार... ७
योगीराज आनन्दघनजी ने परमात्मप्रीति के और परमात्मभक्ति के गीत गाये। इस स्तवना में वे परमात्म-वचन, परमात्म - आज्ञा का पालन करने की बात कहते हैं।
चेतन, आचार्य श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी ने चार प्रकार के अनुष्ठान बताये हैं१. प्रीति - अनुष्ठान, २. भक्ति - अनुष्ठान, ३. वचन - अनुष्ठान और ४. असंगअनुष्ठान । सर्वप्रथम चाहिए परमात्मा के प्रति हार्दिक प्रीति । प्रीति हमेशा