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काशीदेश में अहिंसा-प्रचार
८३ एक मंत्री ने अपना सुझाव दिया :
कुछ दिन हम यहाँ रुकें और यहाँ की गरीब...कमजोर...और दीनहीन प्रजा को अनाज बाँटें...कपड़े बाँटें...रूपये बाँटें! फिर मध्यमवर्गी लोगों को कपड़े व अनाज बाँटें | इसके बाद श्रीमंतों को अपने वहाँ निमंत्रित करके उन्हें श्रेष्ठ भोजन करवाये और उपहार में गुजरात की कला से रची-पची कलात्मक वस्तुएँ प्रदान करें. इस तरह प्रजा का प्रेम जीतकर फिर राजा से मिलें। इससे हमारा कार्य काफी हद तक आसान हो जाएगा।
अन्य तीन मंत्रियों के दिमाग में भी यह बात जच गई। कार्यवाही शुरू कर दी गई।
नगर के चारों दरवाजों पर गरीबों को अन्न-वस्त्र और पैसे देने का कार्य प्रारंभ हो गया। 'गुजरात के राजा कुमारपाल की ओर से यह सब दिया जा रहे है' वैसी घोषणा की गई। चार-पाँच दिनों में तो गरीबों के घर-घर में और हर झोंपड़े में राजा कुमारपाल का नाम प्रसिद्ध हो गया।
इसके पश्चात् मध्यमवर्गीय लोगों को भी आकर्षित किया गया और धनाढ्य लोगों का भी संपर्क बनाया गया।
इतना सब होने के बाद एक दिन चारों मंत्री राजा जयंतचन्द्र के पास गये । राजा को प्रणाम करके राजा कुमारपाल के द्वारा भेजा गया उपहार दिया। दो करोड़ सोनामुहरें और दो हजार घोड़े भेंट किये। फिर वह चित्र राजा के समक्ष रखा। राजा ने सर्वप्रथम गुर्जरपति की कुशलता पूछी। उस चित्र को हाथ में लेकर पूछा : 'यह क्या है?'
एक मंत्री ने कहा : 'महाराजा, इस चित्र में एक ओर हमारे राज्य के गुरुदेव हेमचन्द्राचार्य हैं और दूसरी ओर हमारे राजा कुमारपाल हैं | यह चित्र आपकों भेंट भिजवाकर हमारे महाराजा ने आपसे विनम्र शब्दों में संदेश भिजवाया है कि -
मेरे हेमचन्द्राचार्य नाम के गुरुदेव हैं। वे सर्वज्ञ हैं। वे लोगों को मोक्षमार्ग का उपदेश देते हैं। ऐसे श्रेष्ठ गुरु के पास मैंने दयाधर्म अंगीकार किया है। मैंने व्यक्तिगत जीवन में तो हिंसा का आचरण बंद किया ही है - साथ ही अपने समूचे राज्य में से हिंसा को निकाल दिया है | परदेशों में हो रही हिंसा को भी रोकने की मेरी तीव्र इच्छा है। इसके लिए मैंने अपने सचिवों को आपके पास भिजवाये हैं। और आपसे विनम्र अनुरोध करना है कि आप भी अपने राज्य में
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