________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
देवबोधि की पराजय
७०
१३. देवबोधि की पराजय
भृगुपुर नाम का नगर था।
उस गाँव में देवबोधि नाम का एक संन्यासी रहता था। उसने सरस्वती देवी की उपासना की थी। सरस्वती उस पर प्रसन्न हुई थी। उसने 'सारस्वतमंत्र' सिद्ध किया था। वह श्रेष्ठ विद्वान बना था। और लोगों को आश्चर्यचकित कर दे, वैसी अद्भुत कलाएँ उसने अर्जित की थी। __ एक दिन एक मुसाफिर ने आकर देवबोधि संन्यासी से कहा : 'पाटन में 'हेमचन्द्राचार्य' नाम के जैनाचार्य के ज्ञान और पुण्य प्रभाव से गुजरात का राजा कुमारपाल जैन धर्म को मानने लगा है। इससे प्रजा में भी 'जैन धर्म श्रेष्ठ है' की मान्यता दृढ़ होती जा रही है।'
यह बात सुनकर देवबोधि सोचने लगा : 'मेरे जैसा विद्वान और चमत्कारी गुरु जिन्दा-जागता बैठा है... और गुजरात का राजा अपना कुल धर्म छोड़कर, शैव धर्म का त्याग करके जैन धर्म को स्वीकार करे - यह बात असह्य है... यह नहीं होना चाहिए। किसी भी कीमत पर मैं राजा को पुनः शैव धर्म का उपासक बनाऊँगा।'
यह सोचकर देवबोधि पाटन में आया । एक शैव मंदिर में उसने अपना डेरा डाला। मंदिर में सुबह-शाम छोटे-बड़े अनेक लोग महादेव के दर्शन करने के लिए आते थे! देवबोधि संन्यासी को वहाँ देखकर लोग उसे भी प्रणाम करते। देवबोधि उन्हें छोटे-बड़े चमत्कार दिखाने लगा।
चमत्कार को नमस्कार! देवबोधि के चमत्कार की बातें पाटन में घर-घर फैलने लगी! - शैव मंदिर में एक चमत्कारी संन्यासी आया है...! - पल-पल में वह रूप बदलता है! - लोगों को सही भविष्य बताता है! - आकाश में से शिव की मूर्ति ले आता है! - सोनामुहरें बरसाता है..
For Private And Personal Use Only