________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
गुरुदेवने जान बचायी !
आचार्यदेव ने कहा : 'यहाँ कहाँ कुमारपाल है भाई? फिर भी यदि राजा की आज्ञा है तो तुम जहाँ चाहो वहाँ तलाश कर सकते हो!' __सैनिकों ने उपाश्रय देखा। एक-एक कमरा देख लिया... ऊपर देखा... नीचे देखा... आगे देखा... पीछे देखा... इधर देखा... उधर देखा... पर कहीं कुमारपाल का पता नहीं लगा। वे निराश हो गये, साथ ही मेहनत निष्फल हो जाने से क्रुद्ध भी हुए। वे वहाँ से चल दिये।
कुछ समय गुजरा । आचार्यदेव ने उपाश्रय के द्वार बन्द करवाये... कमरे में गये । पुस्तकों को दूर करवा कर तलघर में से कुमारपाल को बाहर निकाला। बाहर निकलते ही कुमारपाल आचार्यदेव के चरणों में गिर गया। उसका गला अवरुद्ध हुआ जा रहा था। 'गुरुदेव, आपने मेरी जान बचाई... आपने मुझ पर महान उपकार किया!'
'कुमार, उन दुष्ट सैनिकों की बातें सुनी थी ना? कितने जोर-जोर से चिल्ला रहे थे?' ____ 'गुरुदेव, मैंने उनकी बातें सुनी थी और आपका समयोचित जवाब भी। भगवान्, आपको मेरी खातिर असत्य बोलना पड़ा ना?
'कुमार... एक जीव की रक्षा के लिए बोला गया असत्य वचन भी असत्य नहीं होकर सत्य ही कहा जायेगा। मुझे तो हर कीमत पर तेरी रक्षा करनी थी...ताकि भविष्य में तू असंख्य जीवों की रक्षा कर सके!' __ 'भगवंत, एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही है कि इतने बुढ़ापे में राजा सिद्धराज को यह क्या सूझा? उसे किस बात की कमी है? इतना विशाल राज्य है... और भरपूर धन भंडार है...!
खैर, उसके दिमाग में मेरे लिए तिरस्कार है... नफरत है... यह भी मेरे ही किसी दुर्भाग्य का परिणाम है!
महात्मन्, आपने बड़े मौके पर, आपकी जिन्दगी की परवाह किये बगैर मुझे बचा लिया! मैं आपका कितना उपकार मानूं? मेरे प्राणों की रक्षा करके आपने मुझ पर महान उपकार किया है! इस उपकार का बदला मैं न जाने कब चुका सकूँगा? आपका जैनधर्म दयामय है... यह बात आज तक मैंने सुन रखी थी... पर आज इसका प्रत्यक्ष अनुभव हो गया!
For Private And Personal Use Only