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गुरुदेवने जान बचायी !
___५३ 'वत्स, जैन साधु राज्य लेते भी नहीं और कभी राजा बनते भी नहीं। हम तो त्यागी हैं | परन्तु कुमार जब तू राजा हो तब श्री जैन धर्म का देश और दुनिया में प्रचार-प्रसार करना । अहिंसा धर्म का पालन घर-घर में करवाना।' ___ कुमारपाल ने प्रतिज्ञा की : 'मैं जब राजा बनूँगा तब आपकी आज्ञा का सहर्ष पालन करूँगा।'
इसके बाद आचार्यदेव महामंत्री उदयन को पास के कमरे में ले गये और उनसे कहा : ___ 'महामंत्री, तुमने सारी बात शांति से सुनी है....। इस युवक के सिर पर इन दिनों मौत साया बनकर मँडरा रही है... यह बात तुम्हें मालूम है। तुम्हें उसका सहायक होना है। उसे अपने घर पर ले जाओ। उसका सुन्दर अतिथि सत्कार करके उसे सहायता करना... यह युवक भविष्य में जैन धर्म को पूरे देश में फैलायेगा। असंख्य सत्कार्य इसके हाथों होनेवाले हैं। इसे सहायता करना हमारा कर्तव्य है!
तुम्हें इसे अपनी हवेली में गुप्तरूप से रखना है। किसी को हवा तक न लगे इसकी सावधानी रखनी होगी।
उदयन मंत्री चुस्त जैन थे। राजा सिद्धराज ने उन्हें खंभात और उसके आसपास के इलाके का कार्यभार सौंपा हुआ था।
उदयन मंत्री कुशल... राजनीतिज्ञ और सक्षम राज्य संचालक थे। वे आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरिजी के प्रति बहुत लगाव रखते थे। उन्हें गहरी आस्था थी... श्रद्धा थी आचार्यश्री के प्रति! आचार्यश्री की आज्ञा के मुताबिक वे कुमारपाल को अपनी हवेली पर ले गये।
कई महीनों बाद कुमारपाल ने स्नान किया। स्वच्छ और सादे वस्त्र पहने। पेटभर के स्वादिष्ट भोजन किया और एकदम आराम से बारह घंटे की नींद निकाली। ___ कुछ दिन इस तरह बीत गये... इधर राजा सिद्धराज को भनक लग गई कि 'कुमारपाल खंभात में कहीं छुपा हुआ है!' तुरन्त उसने सैनिकों की एक टुकड़ी को बुलाया और कहा : 'तुम खंभात पहुँचो और कुमारपाल को कैद करके उसे मौत के घाट उतार दो!' ___ उदयन मंत्री को अपने गुप्त सूत्रों से इस बात का पता लग गया। उन्होंने कुमारपाल को सावधान कर दिया :
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