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गुरुदेवने जान बचायी !
५२ जंगलों में छुपता-छुपाता भटक रहा हूँ... कभी-कभी तो तीन-तीन, चार-चार दिन तक खाना नसीब नहीं होता! ऐसी बदकिस्मती का शिकार मैं क्या राजा होऊँगा? नहीं... यह असंभव है...!!
'कुमार, तेरी बात सही है... ऐसे हालात में राजा होने की मेरी बात तुझे तीखे मजाक के अलावा कुछ नहीं लगेगी। पर मेरे ज्ञान में तेरा भविष्य काफी उज्ज्व ल है!'
कुमार ने सोचा : 'ये योगी पुरुष हैं... महाज्ञानी हैं... इनका कथन झूठा तो नहीं हो सकता... फिर भी इनसे निश्चित समय पूछ लूँ... और यदि ये बता दे तो कुछ हिम्मत बनेगी... कुछ हौसला बढ़ेगा!'
उसने गुरुदेव से पूछ लिया : 'योगीराज, क्या आप कह सकते हैं - किस साल में, किस महीने में और कौन से दिन मैं राजा बनूँगा?' ___ 'गुरुदेव तो ज्ञानी थे। योगसिद्ध पुरुष थे। उन्होंने भविष्यवाणी करते हुए कहा :
'विक्रम संवत् ११९९, माघसर वद चौथ के दिन तुझे राजगद्दी मिलेगी। यह मेरा सिद्धवचन है। यदि मेरा यह भविष्य कथन गलत सिद्ध होगा तो मैं इस ज्योतिष शास्त्र का त्याग कर दूंगा!'
उन्होंने अपने शिष्य के पास दो कागज पर यह भविष्य कथन लिखवाया। एक कागज कुमारपाल को दिया और दूसरा कागज महामंत्री उदयन को दिया।
महर्षि हेमचन्द्रसूरिजी का इतना विश्वासभरा चमत्कारिक ज्ञान देखकर आनन्द और आश्चर्य से कुमारपाल नाच उठा। अपने सारे दु:ख वह भूल गया। दोनों हाथ जोड़कर सिर गुरुदेव के चरणों में रख कर वह गद्गद् स्वर में बोला :
'गुरुदेव, आपका यह भविष्यकथन यदि सच होगा तो यह राज्य मैं आप ही को समर्पण कर दूंगा। आप राजाधिराज बनेंगे... मैं आपका चरण सेवक होकर रहूँगा।'
आचार्यदेव के चेहरे पर स्मित की रेखाएँ उभरी... उन्होंने वत्सलता से नम्र शब्दों में कहा :
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