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'सिद्धहेम' व्याकरण की रचना
२९ अचानक राजा की आँखें राजसभा में उपस्थित हेमचन्द्रसूरिजी की आँखों से मिली!
हेमचन्द्रसूरिजी खामोशी की गिरफ्त में कैद वातावरण को अपनी धीरगंभीर आवाज से चीरते हुए बोले : _ 'मैं निर्माण करूँगा राजा भोज के द्वारा निर्मित व्याकरण से भी ऊँचे दर्जे का व्याकरण! 'अवश्य गुरुदेव! आप श्रेष्ठ व्याकरण की रचना करने में सक्षम हो।' 'पर इसके लिए जरूरी साधन-सामग्री, सहायक ग्रन्थ चाहिएंगे।' 'राज्य की ओर से सब कुछ उपलब्ध करवाया जाएगा।' 'तो गुजरात गर्वोन्नत हो सके साहित्य के विश्व में, वैसे व्याकरण का चन्द महीनों में ही मैं निर्माण कर दूंगा।' ___ आचार्यदेव ने कश्मीर से आठ ग्रन्थ मँगवाये। उन सब ग्रन्थों का अध्ययन किया। अपनी प्रतिभा को पूरी तरह दाव पर लगा कर उन्होंने नये व्याकरण (Grammar) की रचना की। एक साल जितने समय में सवा लाख श्लोकों की रचना करके व्याकरण ग्रन्थ का निर्माण किया।
इस संस्कृत व्याकरण का नाम 'सिद्धहेम व्याकरण' रखा। सिद्ध से 'सिद्धराजा' की स्मृति होती थी, और 'हेम' शब्द 'हेमचन्द्राचार्य' का परिचायक था।
आचार्यदेव ने राजा सिद्धराज को सूचना दी : 'राजेश्वर, तुम्हारी इच्छा-महत्वाकाँक्षा के मुताबिक संस्कृत व्याकरण की रचना हो चुकी है।'
'इतने कम समय में?' 'हाँ...माँ सरस्वती की कृपा से और गुरुजनों के अनुग्रह से!' राजा सिद्धराज तो खुशी के मारे झूम उठा। उसने कहा : 'गुरुदेव, उस महान, ग्रन्थ को मैं ऐसे ही ग्रहण नहीं करूँगा। हाथी के औहदे पर उसे रखकर पाटन के राजमार्गों पर जुलूस के साथ घुमाऊँगा। बड़े हर्षोल्लास से राजसभा में ले जाऊँगा।'
राजा ने अपना विशेष हाथी सजाया। उस पर सिंहासन रखवाकर सोने की थाली में उस 'व्याकरण ग्रन्थ' को रखा। उस पर श्वेत छत्र रखवाया।
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