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'सिद्धहेम' व्याकरण की रचना
. "सिद्धहेम' व्याकरण की रचना
- यौवन वय! - ऊँची सप्रमाण देह! - मोहक एवं तेजस्वी चेहरा! - काली-काली दाढ़ी-मूंछ! - शरीर पर लपेटे हुए श्वेत वस्त्र! - बगल में रजोहरण और हाथ में काष्ठ दण्ड!
- जमीन पर निगाहें रखकर आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरिजी पाटन के राजमार्ग पर चले जा रहे हैं। उनका अनुसरण करते हुए उनके दो विनीत शिष्य पीछेपीछे चले आ रहे हैं। ___ उस समय, उस राजमार्ग पर सामने की ओर से गुजरात के राजा सिद्धराज की सवारी आ रही थी। राजा हाथी के औहदे पर आसीन था। नगर
का अवलोकन कर रहा था। ___ प्रजाजन भी अपने प्रिय और पराक्रमी राजा को दोनों हाथ जोड़कर... उसका अभिवादन कर रहे थे।
राजा की निगाह अचानक हेमचन्द्रसूरि पर पड़ी। प्रतापी और प्रभावशाली आचार्य को देखकर राजा ठगा-ठगा सा रह गया। उसके मन में प्रश्न जगा : 'यह साधु पुरुष कौन होंगे? मैंने आज तक ऐसे तेजस्वी और युवान साधु को देखा नहीं है!'
इतने में तो आचार्य हाथी के निकट आ गये। राजा और आचार्य की आँखें मिली। राजा ने दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम किया। आचार्य ने दाहिना हाथ ऊपर उठाते हुए आशीर्वाद मुद्रा में 'धर्मलाभ' का आशीर्वाद दिया।
राजा ने हाथी को रोका। आचार्यदेव से विनति की : 'गुरूदेव, कुछ सुनाइये ।' तुरन्त ही आचार्यदेव के मुखारविन्द से एक श्लोक निकला :
'सिद्धराज! गजराजमुच्चकैरग्रतो कुरू यथा च वीक्ष्य तम्।
संत्रस्तु हरितां मतंगजा स्तैः किमद्यभवतैव भूधृता?
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