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सच्ची सुवर्णसिद्धि
१३८ ___ 'मंत्री, मैं कल सबेरे ही यहाँ से पाटन के लिए प्रस्थान करने का इरादा रखता हूँ।' ___ वाग्भट्ट एवं अन्य राजपुरुष खुश हो उठे। उन्होंने गुरुदेव को भावपूर्वक पुनः-पुनः वंदना की एवं वे पिछले पैर कमरे से बाहर निकले । __जल्दी से उन्होंने पाटन की ओर प्रयाण किया। पाटन पहुँच कर गुरुदेव को शुभ समाचार दिये।
गुरुदेव ने कुमारपाल से कहा : 'राजन्, गुरुदेव ने खंभात से विहार कर दिया है... कुछ ही दिनों में वे पाटन पधार जाएँगे।' 'गुरुदेव का मैं भव्य स्वागत करूँगा।'
० ० ० राजा कुमारपाल और पाटन का संघ देवचन्द्रसूरिजी का स्वागत करने के लिए पाटन के बाहर पहुँचे इससे पूर्व तो गुरुदेव बिना किसी पूर्वसूचना के... सब की नजर चुराकर सीधे ही उपाश्रय में आ पहुंचे।
- उन्हें समारोहों में जाना पसंद नहीं था। - उन्हें मान-सम्मान अच्छे नहीं लगते थे। हेमचन्द्रसूरिजी ने एक श्रावक को कुमारपाल के पास भेजा और कहलवाया... 'गुरुदेव उपाश्रय में पधार गये हैं।' राजा और प्रजा... सभी उपाश्रय में आये। - हेमचन्द्रसूरिजी ने भावपूर्वक गुरुदेव के श्रीचरणों में वंदना की। राजा और प्रजा ने भी वंदना की।
- गुरुदेव ने वहाँ पर सादी-सरल भाषा में, अल्प शब्दों में कुछ देर धर्म का उपदेश दिया। फिर सभा में ही उन्होंने हेमचन्द्रसूरिजी से पूछा : 'कहो... संघ का कौन सा कार्य है?' ।
हेमचन्द्रसूरिजी ने सभा को विसर्जित की। कुमारपाल के अलावा सभी गृहस्थों को विदा कर के गुरुदेव से कहा : __'गुरुदेव, आप कृपया परदे के पीछे पधारिये, वहाँ पर आपके चरणों में कुछ निवेदन करना है।' ___ गुरुदेव, हेमचन्द्रसूरिजी और राजा कुमारपाल तीनों परदे के पीछे बैठे। हेमचन्द्रसूरिजी ने गुरुदेव से कहा :
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