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डायनों को मात दी
____१०९ समूचा भरुच जाग उठा। जैसे कि भूचाल आ गया। 'क्या हुआ? क्या हुआ?' बोलते हुए लोग घर से बाहर निकल आये। घबराहट के मारे सभी व्याकुल हो उठे थे।
आम्रभट्ट के शरीर को घेर रही हुई शाकिनियाँ भी घबरा उठीं। वे सब दौड़ी-दौड़ी सैंधवी देवी के पास आई। वहाँ आते ही यशश्चन्द्र ने उन सभी को मंत्रशक्ति से बाँध दिया। वहाँ से तनिक भी न खिसक सके उस तरह जमीन के साथ चिपका दिया।
यशश्चन्द्र की आवाज कौंधी : 'डायनों, तुम आम्रभट्ट को सताना बंद करो... वर्ना मैं तुम्हें छोड़नेवाला नहीं।'
डायनों के शरीर में एक साथ हजार-हजार भाले चुभते हो वैसी पीड़ा धधकने लगी थी। उनकी आँखों में डर के काले साये तैर रहे थे। यशश्चन्द्र की मंत्रशक्ति के प्रभाव से वे हक्की-बक्की सी रह गई थीं।
यशश्चन्द्र की गरजती हुई आवाज ने उन्हें और आंतकित कर डाला : 'क्या विचार है तुम्हारा? आम्रभट्ट को मुक्त करती हो या नहीं? दिन में तारे गिनवा दूंगा।'
रोती-कलपती हुई डायने कातर स्वर में अनुनय करने लगी : 'मुनिराज...ओ महाराज... हमें माफ कर दो। हम आपके भक्त आम्रभट्ट को छोड़ देंगे, परन्तु पहले आप हमें मुक्त कर दीजिए... दया कीजिए।' __ 'वाह-वाह । यह कभी नहीं हो सकता। तुम मुझे झांसा दिलाना चाहती हो? मुझे छोटा बच्चा समझ रखा है क्या? पहले आम्रभट्ट को मुक्त करो। तुम्हें इतनी पीड़ा हो रही है तो उस बेचारे बेगुनाह आम्रभट्ट को कितनी पीड़ा महसूस होती होगी। अभी कहता हूँ....मान जाओ...वर्ना यहीं पर नरक की वेदना उठानी होगी... जमीन पर सिर पटक-पटक कर मर जाओगी।' ___ 'नहीं मुनि नहीं, हम से यह पीड़ा सही नहीं जाती। आम्रभट्ट को मुक्त करते हैं। इन आचार्यदेव का शरण स्वीकार करते हैं। कृपा कीजिए... हमें मुक्त कीजिए।'
'अरी डायनों, आम्रभट्ट जैसे परोपकारी पुरुष का तुम्हें रक्षण करना चाहिए या इस कदर भक्षण? तुम्हें जैन धर्म के दया धर्म को मानना होगा। इन गुरुदेव की सेवा करो....जाओ....मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ।'
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