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राजा का रोग मिटाया अधूरी नहीं है। इसलिए जल्दी से जाइये, और पाटन के बाहर लकड़ियों की चित्ता रचाइये... यदि सुबह हो गयी तो बड़ा भारी अनर्थ हो जाएगा!'
महामंत्री ने कहा : 'महाराजा, मैं अल्प समय में ही वापस आता हूँ।' यों कहकर महामंत्री उदयन महल से निकलकर सीधे हेमचन्द्रसूरिजी के उपाश्रय में पहुँचे । गुरुदेव को वंदना की और भारी मन से रात को कुमारपाल के साथ हुई सारी घटना का ब्योरा दिया।
'महामंत्री, राजा की धर्म श्रद्धा बड़ी गजब की है। उसे जल मरने की आवश्यकता नहीं है। तुम एक प्याले में गरम पानी ले आओ।'
गुरुदेव ने उस पानी को अभिमंत्रित किया। 'महामंत्री, तुम जल्दी से राजमहल पर जाओ। इस पानी से राजा के शरीर पर छींटे डालो। राजा का कोढ़ रोग दूर हो जाएगा और उसका शरीर पूर्ववत् निरोगी-स्वस्थ हो जाएगा!' ___ महामंत्री पानी लेकर शीघ्र ही राजमहल में गये। राजा के कान में कहा : 'गुरुदेव ने यह पानी भेजा है।'
राजा के पूरे शरीर पर पानी छींटा...पानी छींटते ही शरीर निरोगी हो गया... सूर्य के उदित होते ही ज्यों अंधकार तितर-बितर हो जाता है त्यों कोढ़ रोग दूर हो गया!
राजा का हृदय तो अत्यन्त हर्ष से नाच उठा। उसने महामंत्री से कहा : 'महामंत्री, गुरुदेव की शक्ति तो सचमुच ही विस्मित कर दे वैसी है... ऐसे उग्ररोग को भी उन्होंने पलक झपकते मिटा दिया... वह भी दूर बैठे-बैठे भेजे पानी के द्वारा! उस दुष्ट देवी पर तो गुरुदेव की निगाहें गिरे उतनी देर है... उसके क्या हाल होंगे? सचमुच उन महान् गुरुदेव की मुझ पर बड़ी भारी कृपा है। बाघ के जबड़े में से हिरन बच जाए वैसे मैं मोत के मुँह में से बच गया हूँ।'
सबेरा हो गया था। महामंत्री को बिदा करके कुमारपाल स्नान वगैरह से निवृत्त होकर, गुरुदेव के दर्शन-वंदन करने के लिए निकले।
गुरुदेव के दर्शन करके... गुरुदेव को देखते ही वे भावविभोर हो उठे।
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