SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है ७१ सम्यग्दृष्टि से देख नहीं सकते थे! वे किसी व्यक्ति के विषय में गुणदृष्टि से सोच नहीं सकते थे । सहवर्ती साधकों की बाह्यक्रियाओं के आधार पर, बाह्य कार्यकलापों पर वे अपनी धारणा निश्चित कर लेते थे। सर्वत्र बुराई ही बुराई उनको नजर आती थी। मैंने उनको एक किस्सा सुनाया आपने मक्का और मदीना का नाम सुना होगा । मदीना में हुसेन बसराई नाम का फकीर प्रसिद्ध था । पहुँचा हुआ फकीर था। एक बार हुसेन फिरते हुए एक नदी के किनारे पहुँचे । नदी के किनारे एक युवा बैठा था, उसके पास एक प्रौढ़ा स्त्री बैठी थी। युवक के पास एक बोतल थी, बोतल वह पी रहा था । हुसेन एकटक उस पुरुष को देख रहे थे, उनके मुख पर घृणा के भाव आ गए। 'यह स्वयं शराब पीता है और महिला को भी शायद पिलाएगा...।' हुसेन फकीर थे, उनको शराब और शराबी के प्रति घृणा होना स्वाभाविक था । इतने में दूसरी घटना बनी नदी के प्रवाह में। एक नाव में सात व्यक्ति बैठकर नदी पार कर रहे थे, मार्ग में नाव उलट गई। सातों व्यक्ति डूबने लगे। उस युवक ने इस करुण दृश्य को देखा । उसका हृदय द्रवित हो गया। वह पानी में कूद पड़ा, तैरता हुआ आगे बढ़ा। डूबते हुए उन सात मनुष्यों में से छः मनुष्यों को उसने बचा लिया । : फकीर हुसेन देखते रह गए ! इतने में उस युवक ने आकर हुसेन को कहा ओ महापुरुष, तुम बड़े आदमी हो न? जाओ सातवें पुरुष को तुम बचा लो.... कूद पड़ो पानी में! तुम अपने आपको बहुत उच्च पुरुष मानते हो...दूसरों को हल्की दृष्टि से देखते हो... तुमने मुझे शराबी समझा है न? फकीर, इस बोतल में शराब नहीं परन्तु नदी का पानी है और यह औरत दूसरी कोई नहीं है, मेरी माँ है! तुम भूल गए फकीर, कि तुम्हें अपने आपको उच्च नहीं परन्तु निम्नस्तर का मानना चाहिए। तुम अच्छे नहीं थे इसलिए फकीर बने हो न ? अच्छे ही होते तो फकीर बनने की जरूरत ही नहीं थी ।' हुसेन नतमस्तक हो गए। उस युवक के चरणों में गिर गए। अपनी दोषदृष्टि का उनको ख्याल आ गया । जो मनुष्य अपने आपको संत, महात्मा, ज्ञानी... मानता है, वे दूसरों के प्रति हीन दृष्टि से देखता है... इससे उसका 'अहं' ही पुष्ट होता है। वह गिरता है । मैंने जब यह किस्सा सुनाया, वे विचार में पड़ गए। परन्तु मुझे कोई परिवर्तन की आशा नहीं है। ये महात्मा तो कुछ सरल हृदय के थे परन्तु गूढ़ हृदय वाले कई ऐसे 'महात्मा' हैं कि जो बोलते कुछ नहीं... परन्तु उनका जीवन बोझिल होता है । वे सहज-स्वाभाविक जीवन For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy