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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है ४१ दिन ऐसा आएगा कि तेरा प्रेम नष्ट हो जाएगा। मेरे में आज जो गुण हैं, संभव है कल नहीं भी हों। आज तेरी गुण दृष्टि है, संभव है कल तेरी दृष्टि, दोष दृष्टि बन जायें! प्रेम नहीं टिकेगा। ___ 'गुणरहित प्रेम' करने का अभ्यास (प्रेक्टीस) करना पड़ेगा! उस अभ्यास के लिए 'मूर्ति' है 'प्रतिमा' है। स्वर्ण की हो या पाषाण की हो वह प्रतिमा, उसमें कोई गुण नहीं, कोई दोष नहीं! उस मूर्ति से प्रेम करने को कहा है, प्रेमरसपारंगत परमर्षियों ने! परमात्मा की उस पाषाण-प्रतिमा को देखते ही रोमांच हो जाना चाहिए... आँखों में हर्ष के आँसू उमड़ने चाहिए... इत्यादि। कहा गया है न ऐसा? पाषाण से प्रेम करना सीखोगे तो आत्मा से, परमात्मा से प्रेम करना आएगा। गुणरहित मूर्ति से प्रेम करना सीखो! 'उस मूर्ति में आकार तो होता है न? सौन्दर्य तो होता है न? इसलिए प्रेम होता है। वहाँ भी प्रेम का आधार सौन्दर्य का गुण बनता है!' ऐसी शंका तेरे मन में हो सकती है। बात भी ठीक है। जड़ पदार्थों में भी हम गुण देखते हैं और प्रेम करते हैं। परन्तु हमारे प्रशिक्षक जानते थे इस बात को, इसलिए बिना आकार के, बिना सौन्दर्य के पत्थरों से प्रेम करने को कहा! कहा है न? लोग ऐसे पत्थरों से भी प्रेम करते हैं न? 'गुणरहित प्रेम' का अभ्यास ऐसे पत्थरों से प्रेम करने से शुरु होता है। ___ 'आकाररहित, आकृतिरहित पत्थरों से जो गुणरहित हैं, उनसे प्रेम करना सिखना पड़ेगा | शत्रुजय के पहाड़ के पत्थरों से प्रेम करते हैं न? उन पत्थरों में कौन-सा सौन्दर्य है? कौन-सा रूप है? फिर भी प्रेम करना है। __परन्तु... हमारा मन तो विचित्र है। जहाँ उस मन को गुण नहीं दिखेगा वहाँ वह कोई न कोई कामना-अभिलाषा को लेकर प्रेम करने लग जाता है। 'इस पत्थर को पूजने से पत्थर पर सिर लगाने से धन मिलता है, बच्चे मिलते हैं, मन की आशाएँ पूर्ण होती हैं अथवा पुण्य कमाया जाता है....' तुरंत ही मन उस आकृतिहीन, सौन्दर्यहीन, गुणरहित पत्थर से प्रेम करने लग जाता है। नारदजी को मन की इस आदत का भी ज्ञान था। वे जानते थे कि मनुष्य गुणरहित पत्थरों से और गुणरहित मानवों से भी प्रेम करने लग जाएगा, यदि उसकी मनोकामनाएं पूर्ण - उनसे पूर्ण होती होगी। अतः उन्होंने कहा, 'प्रेम कामनारहित' चाहिए। मात्र गुणरहित ही नहीं, कामनारहित भी चाहिए। ___ ऐसा क्यों कहा नारदजी ने? कुछ भी पाने की इच्छा से जो मनुष्य किसी से भी प्रेम करेगा, उसका प्रेम अखंड नहीं रहेगा। जब उसकी इच्छा पूर्ण नहीं होगी, तब प्रेम नष्ट हो जाएगा। ऐसा ही हो रहा है संसार में | हर मनुष्य For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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