________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२६
जिंदगी इम्तिहान लेती है अपने जीवन में, मेरे खयाल से कोई अशांति, कोई संताप नहीं टिक सकता अपने मन में | यदि तू लिखेगा तो इस विषय में विस्तार से लिखूगा। परंतु कितना लिखूगा? तू स्वयं यदि कुछ दिनों के लिए यहाँ आ जाए तो? जो बातें प्रत्यक्ष में होती हैं... भावों की अभिव्यक्ति जो प्रत्यक्ष में होती है... पत्राचार रूप परोक्ष में कैसे हो सकती है?
अब तो पत्राचार में भी बाधा आ सकती है! बंबई है न! लिखने का इतना समय... नीर शांति का समय ही कहाँ मिलता है? दैनिक और प्रासंगिक कार्य __ भी इतने आ जाते हैं... समय चला जाता है। फिर भी मेरा प्रयत्न पत्र लिखने का तो रहेगा ही। तेरा पत्र आता है, तभी से प्रत्युत्तर लिखने का सोचता हूँ। अभी यह पत्र समाप्त करता हूँ।
कुशल रहे! प्रसन्न रहे! २८ मार्च, १९७६ बंबई
- प्रियदर्शन
For Private And Personal Use Only