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जिंदगी इम्तिहान लेती है
२१२ ___ महानुभाव! यहाँ वर्षाकाल, धर्मध्यान और धर्माराधना में व्यतीत हो रहा है। श्री शान्तिसूरिकृत 'धर्मरत्न' ग्रन्थ पर दैनिक प्रवचन हो रहे हैं। मध्याह्न में, उपाध्याय श्री यशोविजयजी की एक कृति 'सवा सो गाथानुं स्तवन' उस पर स्वाध्याय चलता है। 'प्रशमरति' विवेचन का दूसरा भाग लिखने का काम भी चलता है... शायद पर्युषणपर्व के पूर्व तक पूरा हो जायेगा।
स्वास्थ्य यँ तो अच्छा ही है, फिर भी 'अशातावेदनीय' कर्म कभी-कभी अपना प्रभाव बता जाता है! चिन्ता नहीं है... आत्मा-शरीर का भेदज्ञान पुष्ट करने का अवसर मिलता है! कुशल रहो-यही कामना।
१२-८-८० भुज (कच्छ)
- प्रियदर्शन
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