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जिंदगी इम्तिहान लेती है
२०१ यदि जैन संघ, जैन संस्कृति के अनुरूप, गाँव-गाँव में और नगर-नगर में अपनी स्वतंत्र शिक्षापद्धति की शालायें शुरु कर दें, बालमंदिर से लेकर कॉलेज तक स्वतंत्र शिक्षापद्धति चलती रहे, तो ही युवापीढ़ी में अपेक्षित योग्यता पनप सकती है, दूसरे कोई उपाय कारगर नहीं बन सकते। क्यों हर संघ का अपना जैन बालमंदिर न हो? जैन संघ के दानवीर जब शिक्षा क्षेत्र में करोड़ों रुपये 'डोनेट' करते हैं, तब संघ की अपनी स्वतंत्र शालाओं का निर्माण और संचालन क्यों न हो? जैनसंघ यदि यह आदर्श प्रस्थापित करेगा तो अन्य समाज भी अनुसरण करेंगे! भारतीय संस्कृति और सभ्यता के अनुरूप, भारतीय जीवनपद्धति में उपयोगी शिक्षापद्धति का प्रचलन होने लगेगा। यदि अभी यह योजना कार्यान्वित हो, तो कुछ वर्षों के बाद इसका अपूर्व परिणाम देखने को मिलेगा।
तू पत्र का प्रत्युत्तर यहाँ ही देना | जून १० तक तो संभवतः यहीं अंजार में रुकना होगा। भुज में चातुर्मास प्रवेश जुलाई में होने वाला है।
तेरी कुशलता चाहता हूँ - अंजार (कच्छ) २५-५-८०
- प्रियदर्शन
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