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जिंदगी इम्तिहान लेती है स्थान नहीं रहा। उनका उपदेश सुनने वाले कम हो गये। कौन-सा लाभ पा लिया उन्होंने?
हाँ, कभी कोई विशेष प्रसंग में स्पष्टभाषी बनना पड़ता है, परंतु उसमें भी नम्रता और मधुरता अनिवार्य है। नहीं चाहिए रोष, नहीं चाहिए आवेश! रोष और आवेश में जागृति नहीं रहती। रोष और आवेश में नम्रता नहीं रहती। इससे सत्य का शृंगार नष्ट हो जाता है। सत्य का सौन्दर्य आहत हो जाता है।
एक बात नहीं भूलना कि दुनिया जैसे नग्न मनुष्य को पसन्द नहीं करती है, वैसे नग्न सत्य को भी पसन्द नहीं करती है। सत्य सुन्दर होना चाहिए | दुनिया सौन्दर्य से प्रेम करती है। सत्य बात का सौन्दर्य है, नम्रता और मधुरता। जिस सत्य पर नम्रता और मधुरता का शृंगार नहीं होता है, उस सत्य से दुनिया प्रेम नहीं करेगी।
तू जानता है कि श्रमण भगवान महावीर हमेशा 'मालकोश' राग में उपदेश दिया करते थे! क्यों उन्होंने 'मालकोश' राग में उपदेश देना पसन्द किया होगा? मालकोश राग के आरोह-अवरोह में कहीं पर भी कटुता... कर्कशता अथवा अभिमान अभिव्यक्त नहीं हो सकता है! इस राग में मधुरता ही मधुरता टपकती है। भगवान महावीर के उपदेश में कहीं पर भी रोष नहीं था, आवेश नहीं था! तो सभी लोग खूब प्रेम से उनका उपदेश घंटों तक सुनते रहते थे। सत्य को स्वीकार करते थे। कई बातें उन्होंने भी साफ-साफ सुना दी है, परंतु कोई कटुता नहीं है, कोई रोष नहीं है... कोई अहंकार की अभिव्यक्ति नहीं है। __ आज तक तूने कटु स्पष्टभाषिता के लाभ सोचे हैं, अब तू नुकसान का विचार करना। मधुर एवं विनम्र स्पष्टभाषिता के लाभों का विचार करना । 'मैं साफ-साफ बात नहीं सुना दूंगा तो काम बिगड़ जायेगा... अथवा मेरी बात कोई मानेगा नहीं, ऐसे भय को तेरे मन से निकाल देना।
दूसरी बातें आगे के पत्र में लिखूगा। परिवार में सभी को 'धर्मलाभ' सूचित करना । सदैव कुशल रहे, यही शुभकामना
१५-११-७६ भीलड़िया तीर्थ (गुजरात)
- प्रियदर्शन
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