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जिंदगी इम्तिहान लेती है
१५८ दूसरे मनुष्यों का नहीं, अपने स्वयं के विषय में भी, गहन आत्मनिरीक्षण के बिना, सही निर्णय होना संभव नहीं है। अपने स्वयं के गुण-दोषों को जानना, वास्तविक रूप में जानना आसान बात नहीं है। आत्मनिरीक्षण बहुत बड़ी बात है। हर कोई मनुष्य आत्मनिरीक्षण नहीं कर सकता! और, जो मनुष्य आत्मनिरीक्षण नहीं कर सकता, वह मनुष्य पर-परीक्षण कैसे कर सकता है? __मुमुक्षु! आत्मनिरीक्षण अध्यात्म मार्ग में तो अनिवार्य है ही, संसार के हर क्षेत्र में आवश्यक है। शान्त मन से, स्वस्थ चित्त से अपने आप को भीतर से देखो। अपने विचारों को देखो, विचारों की स्थिरता-अस्थिरता को देखो। प्रगट और प्रच्छन्न दोषों को देखो | भूतकालीन सफलता-निष्फलता के कारणों का सम्यक् आलोचन करो।
इस प्रकार आत्मनिरीक्षण करने से मनुष्य का भविष्य विशेष उज्ज्वल बन सकता है। परंतु आत्मनिरीक्षण करें कैसे? पर-निरीक्षण और पर-परीक्षण करने में मनुष्य इतना उलझ गया है कि आत्मनिरीक्षण का समय ही नहीं मिलता! दिन-रात पर-निरीक्षण और पर-चिन्ता में निमग्न मनुष्य अपने आपको ही भूल बैठा है।
इस बार खूब आत्मनिरीक्षण होता रहा है। विरक्ति की तीव्र अनुभूति भी हुई। वास्तव में संसार स्वप्न समान लगा| संसार के सारे संबंध वायु समान चंचल लगे। साथ-साथ परमात्मचरणों में तृप्ति की अनुभूति हुई। अन्तर्यात्रा के आनन्द का अनुभव किया।
प्रिय मुमुक्षु! स्वप्नवत् जीवन की स्वप्न समान उलझनों में फँसना मत । उलझनों से हृदय को अलिप्त रखना । निर्लेप रखना। हालांकि मुश्किल है यह काम, फिर भी करना अत्यन्त आवश्यक है। अपने आसपास जो-जो घटनायें घटती हैं, जो-जो बातें बनती हैं... क्या हम मात्र उसके ज्ञाता और द्रष्टा बन सकेंगे? राग-द्वेष से अलिप्त रह सकेंगे? कब वैसे दिन आयेंगे? ___ मुझे तो लगता है कि यदि 'परवृत्तान्त-अन्ध-मूक-बधिर' नहीं बनेंगे तो जीवन में कभी भी शान्ति-समता और समाधि की अनुभूति नहीं होगी? परवृत्तान्त के प्रति अंधापन आ जाना चाहिए। दूसरों की ओर, परपदार्थ की ओर देखना ही नहीं। परपदार्थ, परद्रव्य के विषय में बोलना ही नहीं और परपदार्थ की बातों को सुनना ही नहीं!
यह भी एक साधना है! आत्मविकास की साधना है। आत्मशांति पाने की
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