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जिंदगी इम्तिहान लेती है
१४४ Bअन्तर्यात्रा को लक्ष्य में रखकर यदि तीर्थयात्रा की जाये तो वह सार्थक एवं
सफल होती है। ® तीर्थों की धरती के परमाणु आज भी उतने ही प्रभावी एवं शक्तिशाली हैं... वहाँ पर आज भी विद्युत चुंबकीय क्षेत्र बन जाता है... पर अनुभूतियों की
गहराई में उतरना जरूरी होता है। ® परिस्थितियाँ बनें या बिगड़े... अपनी जागरुकता को यथावत रखना। राग
द्वेष से बचे रहना। ® ज्ञाताभाव एवं द्रष्टाभाव को हर हालत में बनाए रखना। सफलता प्राप्त
करने में समय लग सकता है... पर निराश होने की कतई आवश्यकता
नहीं है! ® सत्त्वशील बन कर जीना होगा।
पत्र : ३३
प्रिय मुमुक्षु!
धर्मलाभ, तेरा पत्र नहीं मिला है। __ हमारी विहार यात्रा सुखपूर्वक हो रही है। इस बार विहार उग्र नहीं है, शांति से परिभ्रमण हो रहा है। तारंगा तीर्थ की यात्रा आनंद पूर्ण रही। तारणगिरि पर आया हुआ यह तीर्थ जितना भव्य है, उतना ही आलादक है। मैं इस तीर्थ में बचपन में भी कई बार आया हूँ।
प्रिय मुमुक्षु! अरावली के इन पहाड़ों में जब कुमारपाल बेसहारा भटक रहा था, गुर्जरेश्वर सिद्धराज के भय से व्याकुलचित्त कुमारपाल जब इन पहाड़ों में छुप रहा था, उस समय उसको कल्पना भी नहीं होगी कि उसके द्वारा इस पहाड़ पर एक भव्य जिनमंदिर का निर्माण होगा। ___ बारहवीं शताब्दी का वह समय था। गुजरात का राजा था सिद्धराज | सिद्धराज निःसंतान था। जब उसको ज्ञात हुआ कि 'मेरा उत्तराधिकारी कुमारपाल होने वाला है, वह झुंझला उठा | उसने कुमारपाल को पकड़ने के लिए, उसकी हत्या करने के लिए भरसक प्रयत्न शुरू किए। कुमारपाल
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