________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जिंदगी इम्तिहान लेती है
१३६ ® जीवमात्र के प्रति स्नेह को स्वीकार करना चाहिए। हाँ... कभी जरूरी लगे
तो उस स्नेह को छान लेना चाहिए ताकि वासना या स्वार्थ का कचरा भीतर न रह जाये! ® जब तक दिल में किसी के प्रति प्रेम सुरक्षित रहता है... तब तक उस व्यक्ति
के प्रति द्वेष या अभाव नहीं जगता है। ® बड़े शहरों की जिन्दगी...
बैठी है! रूप और रुपयों JÄÄÄÄ ÄÄ ÄÄÄ की चकाचौंध में स
। रहा है! ® गाँवों की जिन्दगी में कृ
ना! वहाँ सहज स्वाभाविक भाव मिलते हैं। ® गाँवों में आज भी को
। कूज गूंजती है... सुबहशाम मंदिरों में मधुर
वेतों और खलिहानों में बाँसुरी के सूर सुनाई
पत्र : ३१
प्रिय मुमुक्षु!
धर्मलाभ! चिर प्रतीक्षा के पश्चात तेरा संक्षिप्त पत्र मिला । यदि मेरी अपेक्षा पूर्ण होती तो संक्षिप्त पत्र भी मेरे हृदय को आनन्दित कर देता, परंतु अपेक्षा अपूर्ण ही रही?
फिर भी तू मेरी ओर से निश्चिंत रहेगा। तेरे प्रति मेरे हृदय में जो स्नेह और सद्भाव है, वह सुरक्षित रहेगा, अखंड रहेगा। चूंकि मैं स्नेह का संग्रह करता हूँ। यों भी जीवमात्र के प्रति स्नेह को स्वीकार करता ही हूँ, तो फिर तेरे स्नेह को कैसे तिरस्कृत कर सकता हूँ?
हाँ, मैं तो यह मानता रहा हूँ कि दुर्जनों के भी स्नेह को स्वीकार करना चाहिए। स्नेह को स्वीकार करते समय अवश्य उस स्नेह को छान लेना चाहिए, ताकि उसमें स्वार्थ या वासना का कचरा न आ जाए। पानी को हम छान कर ही पीते हैं न? कभी दूध को भी छानना पड़ता है। यदि यह लगे कि इस स्नेह में स्वार्थ या वासना पड़ी हुई है, तो छान लेना स्नेह को! स्नेह का त्याग नहीं कर देना।
For Private And Personal Use Only