________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जिंदगी इम्तिहान लेती है
१३४ होती होगी, उधर! हजारों... लाखों भक्तजन यहाँ आते होंगे... और आन्तरप्रसन्नता का अनुभव करते होंगे। आज तो वह जगह... वह मंदिर सूना पड़ा है। कुछ क्षण आँखें मूंदकर भगवान नेमनाथ की स्मृति की... भाव वंदना की... और वहाँ से चल पड़े एक गुफा की ओर | पास में ही वह गुफा है। एक हिन्दु संन्यासी की वह गुफा है। कुछ वर्ष वह संन्यासी यहाँ रहा था, आज तो वह गुफा खाली पड़ी है। गुफा में कुछ सुविधायें भी थी। दस-पंद्रह मिनट हम वहाँ बैठे और परिचित मुनिश्री ने इस गुफा के कुछ अनुभव भी सुनाये। उस संन्यासी के विषय में भी कुछ बातें बतायी।
वहाँ से हम अब हम नीचे उतरने लगे। रास्ते में कुछ छोटी-छोटी गुफायें देखते हुए अपने स्थान पर पहुँचे । श्वेताम्बर मंदिर के पीछे भी एक बड़ी अच्छी गुफा है। गुफा में कुछ मरम्मत कराई गई है। ताकि उसमें बैठकर शांति से ध्यान करने वाला ध्यान कर सके | नीरव शांति! पवित्र वातावरण और चारों
ओर दिव्यता! __ परिचित मुनिश्री ने इस गुफा के भी स्वयं किये हुए अनुभव सुनाये । आहारपानी से निवृत्त होकर कुछ समय विश्राम किया और मध्याह्न के बाद चार बजे हमने पहाड़ उतरना शुरू किया। मन में अब अनेक विचार उभरने लगे।
प्राचीन काल में अनेक सत्वशील मुनिवर चार-चार महीने ऐसे पहाड़ों में... गुफाओं में ध्यानमग्न रहते थे... कुछ मुनिवर तो चार महीने के उपवास करके रहते थे। कुछ मुनिवर महीने-महीने के उपवास करके रहते थे... शास्त्रों के ऐसे कई उदाहरण स्मृति में उभरने लगे। सुकोशल मुनि और उनके पिता-मुनि स्मृति में आए और सिंहगुफावासी मुनि भी स्मृति में आए। रामायण काल के अनेक मुनि याद आए एवं 'समरादित्यकेवली-चरित्र' में श्री हरिभद्रसूरिजी ने जो गुफावासी मुनियों का जिक्र किया है, वे भी याद आए! कैसा उच्चतम होगा उनका साधक जीवन! कैसी उत्तम होगी उनकी ध्यानमग्नता! कैसी होगी उनकी श्रेष्ठ योगसाधना! कैसा अपूर्व आत्मानंद अनुभव करते होंगे वे तपस्वी मुनिवर...!! कोई जनसंपर्क नहीं, कोई सामाजिक जीवन नहीं... कोई परिग्रह नहीं... कोई भौतिक पदार्थों की रसवृत्ति नहीं...। ___ मन में घोर अफसोस हो रहा था... अपने जीवन को देखकर | साधु जीवन की वह मस्ती ही कहाँ है? ज्ञानसाधना और ध्यानसाधना की वह प्राचीन परम्परा ही अपने यहाँ नष्टप्रायः हो गई है। आज तो हमारा जीवन ज़्यादातर सामाजिक बन गया है। साधु सामाजिक प्राणी बन गया है। समाज के सतत
For Private And Personal Use Only