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जिंदगी इम्तिहान लेती है
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एक बंडल निकाला, उसको खोला, उसमें से एक 'ब्रेड' निकाली और उस जर्मन सैनिक की जेब में डाल दी। उस औरत ने यह 'ब्रेड' अपने लिए खरीदी थी। वह जर्मन सैनिक अशक्ति से लड़खड़ाता हुआ चल रहा था। इस रशियन महिला को देखकर, चारों ओर से हजारों रशियन महिलायें जर्मन सैनिकों के पास पहुँच गई और उनको रोटी, सिगरेट वगैरह देने लगी! यह देखकर मुझे उस वक्त ऐसा लगा कि वे जर्मन सैनिक दुश्मन नहीं रहे थे, वे इन्सान थे! मात्र वे इन्सान थे!'
रशियन कवि ने निरपेक्ष स्नेह के भव्य विजय की कैसी अद्भुत घटना लिखी है? यदि वह दृश्य मुझे देखने को मिलता... तो मेरी आँखों से अविरत अश्रुधारा बहती! अपराधी के अपराधों को भूल कर उनके दुःखों से द्रवित होकर, उनके दुःख मिटाने वाली करुणा जब मनुष्य के हृदयगिरि से बहती है... वह करुणा गंगा से भी ज़्यादा पवित्र होती है।
निर्व्याज और निरपेक्ष प्रेम का मूल्यांकन करना । ऐसा प्रेम अमूल्य और दुर्लभ होता है। जहाँ से भी ऐसा प्रेम मिलता हो, उस मानव को महामानव मानना। उस मानव को महात्मा समझना । याद रखना तप करने वाले, त्याग करने वाले, विद्वान और पंडित तो बहुत मिल जाएँगे, परंतु ऐसा अद्भुत प्रेम देने वाले बहुत ही कम मिलेंगे । यदि तूने ऐसा प्रेम देने वालों को परखा नहीं और ठुकरा दिया, तो जीवन की अक्षम्य गंभीर भूल होगी।
तेरे अनेक अपराधों को जिन्होंने सहन किए हैं, तेरी अनेक गलतियों को जिन्होंने खूब प्रेम से सुधारने की कृपा की है, तेरे अविनय, औद्धत्य और अनौदार्य की जिन्होंने 'नोट, नहीं की है... सदैव तेरे प्रति स्नेह और ममता से भीनी दृष्टि से ही देखा है... तू उनको क्या समझता है ? तूने उनको किस दृष्टि से देखा है ? तेरे हृदय में उनको कैसा स्थान दिया है ?
मुझे यह बता कि तूने अपने जीवन में कभी किसी के अपराध सहन किए हैं? तेरे साथ दुर्व्यवहार करने वालों के प्रति हँसते मुँह क्षमा प्रदान की है ? तेरी बुराई करने वालों के प्रति तेरा स्नेह अखंड रहा है? तो फिर तेरी आदर्शवादिता कहाँ रही? तेरी सुपात्रता कहाँ रही? तू अन्तरात्मा से सोचना
यह बात ।
पर्युषणा - पर्व निकट है । जीवसृष्टि के साथ ज्ञानदृष्टि से मधुर संबंध स्थापित करने का यह महापर्व है। मोहदृष्टि से तो जीवसृष्टि के साथ अन्याय और अनाचार ही होगा । ज्ञानदृष्टि अनिवार्य है, मोक्षमार्ग की आराधना में ।
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