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जिंदगी इम्तिहान लेती है
तेरा दूसरा प्रश्न : समग्र विश्व में... जड़-चेतन सब पदार्थों में आत्मा कैसे देखी जाये? यदि सर्वत्र आत्मदर्शन हो जाये तो मन में परम शांति स्थापित होगी न? ___ जो जड़ पदार्थ हैं, उनमें चैतन्य का दर्शन कैसे होगा? जड़ में जड़ देखना और चेतन में चैतन्य देखना वास्तविक दर्शन है। हालांकि पृथ्वी, जल, तेज वायु और वनस्पति दिखते हैं जड़, परंतु हैं चेतन! इन पृथ्वी वगैरह में चैतन्य का दर्शन किया जाता है। वैसे जो पशु, पक्षी और मानव हैं, उनमें आत्मवत दर्शन करने से अपना मन दिव्य शांति का अनुभव कर सकता है। परंतु चैतन्य का दर्शन करोगे कैसे? शब्दों में बोलना सरल है, व्यवहार में लाना इतना सरल नहीं है।
प्रत्येक जीवात्मा में विशुद्ध आत्मस्वरूप का दर्शन करने की आदत डालनी पड़ेगी। इसलिए एक अच्छा उपाय है : गुणदर्शन का।
गुणदर्शन, आत्मदर्शन है। दोषदर्शन, देहदर्शन है! जब तक देह है, तब तक दोष है। जब देह नहीं रहेगी, दोष भी नहीं रहेंगे। शुद्ध आत्मस्वरूप में एक भी दोष नहीं है। शुद्धात्मा गुणस्वरूप है। जीवात्मा में गुण देखा यानी आत्मदर्शन किया! जैनदर्शन गुण और गुणी को अपेक्षा से अभिन्न मानता है। मात्र मान्यता ही नहीं, वास्तविकता है। सब जीवों में विशुद्ध आत्मदर्शन करने का यह 'प्रेक्टीकल' उपाय है। प्रतिदिन... प्रतिक्षण इस उपाय को आजमाया जा सकता है।
इसका प्रारम्भ करना तेरे परिवार से। जिस परिवार के साथ तू रहता है, उस परिवार के एक-एक सदस्य के कोई न कोई गुण देखने का प्रयत्न करना | याद रखना, प्रत्येक जीवात्मा में गुण होते ही हैं। अपने पास गुणदृष्टि होगी तो गुण दिखेंगे ही।
किसी के दोष दृष्टिपथ में आ जाये तो सोचना कि 'दोष देह के हैं, आत्मा के नहीं!' दोषों को महत्व नहीं देना । दोष दूर करने का प्रयत्न अवश्य करना, परंतु दोषों के प्रति द्वेष नहीं करना यानी दोषित व्यक्ति के प्रति विद्वेष नहीं करना। परिवार के प्रत्येक सदस्य के विशिष्ट गुण याद रखना । उसके बाद मित्र एवं स्नेहीजनों के गुण देखना । गुणदर्शन से तेरा मन प्रफुल्लित रहेगा।
साथ-साथ विशुद्ध आत्मस्वरूप का, कर्मरहित शुद्धात्मा का ध्यान करना । शुद्ध आत्मद्रव्य का स्वरूप तो जानता है न? मौलिक आठ गुणों का ज्ञान तो है न? उन गुणों के माध्यम से आत्मद्रव्य का ध्यान करना चाहिए।
तेरा तीसरा प्रश्न : 'मेरी आत्मा ही परमात्मा है,' ऐसा विचार कर सकते
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