________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
७८
प्रवचन-८० हैं। उन्हें इस बात का भी ज्ञान नहीं होता कि वे वस्तुएँ उनके उपयोग की हैं या नहीं।
वैषयिक सुखों की स्पृहा तो जीवात्मा में अनादिकाल से पड़ी है ही। जब उन स्पृहाओं को उत्तेजित करनेवाले विषय दिखते हैं दुनिया में, तब उस मनुष्य की विषयेच्छा प्रबल हो जाती है। और, दुनिया में क्या नहीं है? यहाँ तो हर प्रयोजन की हर वस्तु मौजूद होती है। पर उसका मतलब यह तो नहीं है कि वे सब अपने लिए ही हैं। जैसे,
० रेडियो का नया 'मोडेल' देखा...मनुष्य ललचाता है, लेने की इच्छा करता है...।
० टी.वी. सेट देखा, रंगीन टी.वी. देखा, विडियो देखा...मनुष्य ललचाता है और लेने को तत्पर होता है।
० नयी 'कार' देखी, इम्पोर्टेड 'कार' देखी... मनुष्य ललचाता है और लेने को तत्पर होता है।
० नये 'फैशन' के कपड़े देखे...पसन्द आ गये, लेने को तैयार होता है... नये कपड़े सिलवाने की इच्छा होती है।
० नयी 'डिजाइन' का 'फर्निचर' देखा, पसन्द आ गया, लेने की इच्छा हो जाती है...। ___० कोई नया 'सेंट-एसेन्स' देखा... पसन्द आ गया, खरीदने की इच्छा हो जाती है...।
० कोई सुन्दर मकान देखा, पसन्द आ गया, लेने को जी मचलने लगता
है।
० कोई सुन्दर स्त्री देखी, पसन्द आ गयी...पाने की इच्छा हो जाती है। ०किसी 'पिक्चर' की काफी प्रशंसा सुनी या पढ़ी, देखने की प्रबल इच्छा पैदा हो जाती है।
० किसी होटल के भोजन की बहुत प्रशंसा सुनी...वहाँ जाकर भोजन करने की इच्छा तीव्र हो जाती है।
० किसी विशेष भोजन का स्वाद किया, पुनः पुनः वैसा भोजन करने की प्रबल इच्छा बनी रहती है।
For Private And Personal Use Only