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प्रवचन-९६
२४४ माता-पिता चिंतित हुए | बहिनें भी चिंतित हुई। शादी का समय नजदीक आ रहा था। घरवाले सभी बेचैन थे... उतने में एडिसन का खास मित्र आया। एडिसन के पिता ने कहा : 'आज सुबह से एडिसन नहीं मिल रहा है... क्या पता कहाँ चला गया है।' पिता की आँखों में आँसू भर आये। मित्र ने कहा : 'आपने सभी संभवित स्थानों में जाकर देखा?' 'क्या उसकी प्रयोगशाला में जाकर देखा?' 'नहीं, वहाँ नहीं देखा!'
मित्र प्रयोगशाला के द्वार पर पहुँचा | दरवाजा बाहर से बंद नहीं था, भीतर से बंद था। दरवाजा खटखटाया। नहीं खुला। फिर से धड़धड़ाया दरवाजा । भीतर से आवाज आयी : 'खोलता हूँ।' दरवाजा खुला, सामने एडिसन खड़ा था! 'तू अभी क्या कर रहा है यहाँ?' मित्र ने पूछा। 'प्रयोग कर रहा हूँ।' 'सुबह से आज तुझे सब खोज रहे हैं और तू यहाँ प्रयोग कर रहा है?' 'क्यों? क्या बात है?' 'अरे, आज तेरी शादी है....!' 'ओह... मैं तो भूल ही गया था। हाँ, याद आया, आज शादी है!'
एडिसन अपने प्रयोगों में कितना तल्लीन होगा? अपने प्रयोगों में उसको कितना आनन्द मिलता होगा, आप कल्पना करें। खुद अपनी शादी को भूल गया! आप लोगों की बुद्धि में शायद यह बात नहीं उतरेगी। शायद आप एडिसन को मूर्ख समझेंगे। 'धुनी' समझेंगे। जो भी समझना हो समझें - हमें कोई फर्क नहीं पड़ता है। विषयानन्दी लोग ज्ञानानन्दी को मूर्ख और पागल मानते आये हैं। परन्तु ऐसे पागल ज्ञानानन्दियों ने ही दुनिया के कोने-कोने में ज्ञान-प्रकाश की मशालें सुलगायी हैं और पथ-प्रदर्शन किया है।
विषयानन्दी जीवों ने दुनिया में युद्ध पैदा किये, ज्ञानानन्दी लोगों ने दुनिया में शान्ति स्थापित की। विषयानन्दी जीवों ने गृहक्लेश पैदा किये, ज्ञानानन्दी ने गृहक्लेश मिटाये! विषयानन्दी जीवों ने बुराइयों को बढ़ावा दिया, ज्ञानानन्दी महात्माओं ने बुराइयों को मिटाने के प्रयत्न किये। विषयानन्दी जीवों ने ज्ञानानन्दी मनुष्यों का उपहास किया, उन पर उपद्रव किये और ज्ञानानन्दी महात्माओं ने उन पर क्षमा बरसायी ।
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