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प्रवचन-८९
१७५ फूटकर रोने लगा। बड़े भाई ने उसको बहुत आश्वासन दिया... तो वह बड़े भाई के पैरों में लिपट गया और जोरों से रोने लगा। रोते-रोते वह बोला : 'भाई साहब, मुझे क्षमा कर दो या सजा करो... इस अनर्थ का मूल मैं हूँ | मैंने ही भोजन में विष मिलाया था...। आपका शादी का प्रसंग बिगाड़ने का मेरा दुष्ट इरादा था। मैं तो बहाना बनाकर बाहर गाँव चला गया और यहाँ...I, वह ज्यादा नहीं बोल सका... बेहोश होकर जमीन पर गिर गया।' ___ जब वह होश में आया। बड़े भाई को वहाँ पास में ही बैठे देखा। वह नीचा मुँह लटकाये बैठा रहा। बड़े भाई ने कहा : 'भगवान तुझे सद्बुद्धि दे...।' और वे वहाँ से अपने घर पहुँच गये। डॉक्टर ने कहा : 'तात्कालिक उपचार से लड़का बच गया है। आप लड़के को घर ले जा सकते हैं।' लड़के को लेकर छोटा भाई व उसकी पत्नी घर पर पहुँचे। कई दिनों तक वह पश्चात्ताप करता रहा | बड़े भाई के विशाल हृदय को पुनः पुनः सराहता रहा | उसका अभिनिवेश छूट गया।
बड़े भाई गंभीर रहे। उन्होंने अपनी पत्नी को भी नहीं बताया कि दुर्घटना का कारण मेरा छोटा भाई था। उन्होंने छोटे भाई के साथ पूर्ववत् व्यवहार रखा। परिणाम यह आया कि छोटा भाई बड़े भाई का प्रशंसक बन गया, आज्ञांकित बन गया और बड़े भाई के कार्यों का सहयोगी बन गया।
सभी क्षेत्रों में अभिनिवेश का त्याग करना चाहिए। यदि त्याग करोगे तो अनेक अनर्थों से बच जाओगे। जीवन में शान्ति, सुख और प्रसन्नता बनी रहेगी।
आज बस, इतना ही।
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