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प्रवचन- ८९
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इसलिए सर्वप्रथम तो पारिवारिक जीवन में से अभिनिवेश को विदा दे दो। परिवार के किसी भी व्यक्ति के साथ पराभव करने की दृष्टि से अनीतिमय व्यवहार मत करो। प्रारम्भ घर से ही करना पड़ेगा। 'मुझे किसी का भी पराभव नहीं करना है, किसी के भी व्यक्तित्व को खंडित नहीं करना है । किसी की भी उज्ज्वल कीर्ति को लांछन नहीं लगाना है।' ऐसा दृढ़ निर्णय करना होगा । चुनाव ने प्रेम में जहर घोल दिया है :
बम्बई की एक घटना है । एक मन्दिर के ट्रस्ट का चुनाव था। चुनाव में दो भाई खड़े हुए थे। बड़े भाई की विजय हुई, छोटा भाई हार गया। यों भी बड़े भाई की कीर्ति फैली हुई थी । वे दानवीर थे और स्वभाव के भी मृदु थे। समाज में उनकी प्रसंसा होती थी । छोटे भाई के मन में ईर्ष्या सुलग रही थी । दोनों भाई अलग रहते थे। बाहर से अच्छा व्यवहार रखते थे। बड़े भाई के मन में छोटे भाई के प्रति प्रेम था।
बड़े भाई के वहाँ लड़की की शादी का प्रसंग आया। उन्होंने छोटे भाई को बुलाकर भोजन-प्रबंध का कार्य उसको सौंपा। बारात आई। भोजन का प्रबंध कर दिया गया था। सबेरे सबेरे ही छोटे भाई ने कहा : 'मुझे मेरी ऑफिस के काम से अभी बाहर गाँव जाना पड़ेगा । व्यवस्था सब हो गई है। घर से सभी आयेंगे, मैं नहीं आ सकूँगा।' वह चला गया।
बारात आ गई। शादी हो गई। भोजन-समारंभ भी निपट गया । परन्तु रात्रि में छोटे भाई का मुन्ना बीमार हो गया। घर पर छोटे भाई की पत्नी ही थी । उसने बड़े भाई को फोन करके बुलाया। बड़ा भाई गाड़ी लेकर तुरन्त वहाँ पहुँचा। लड़का बेहोश था। हॉस्पिटल में भर्ती कर दिया। डॉक्टर ने कहा : '२४ घंटा बीतने पर मालूम पड़ेगा कि बच्चे का स्वास्थ्य सुधरेगा या नहीं । खाने में कोई विषैला पदार्थ आ गया है ।'
उधर बारात के लोगों में भी हलचल मच गई। जिन्होंने भोजन किया था वे सभी बीमार पड़ गये थे। बड़े भाई की चिन्ता की सीमा नहीं थी । अब पछताये क्या होय ?
छोटा भाई बाहर गाँव से आया। अपने घर पर ताला लगा हुआ था । वह बड़े भाई के घर गया... वहाँ उसको मालूम हुआ कि उसके लड़के की तबीयत गंभीर है। वह भागा भागा हॉस्पिटल आया । सब बात मालूम हुई । वह फूट
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