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प्रवचन-८९
१६७ उल्लंघन करने की इच्छा, नीचता का लक्षण है! ध्यान से सुनना! नीतिमार्ग का उल्लंघन करना, सज्जनता नहीं है, मानवता नहीं है, नीचता है।
नीतिमार्ग का उल्लंघन दो प्रकार से होता है। एक तो अभावों से उत्पीड़ित मनुष्य अनीति का आश्रय लेता है। दूसरा, अधिक पाने की तृष्णा से मनुष्य अनीति का आश्रय लेता है। ___ एक मनुष्य नीतिमय व्यवसाय करना चाहता है, नीतिमत्ता से जीवन जीना चाहता है, परन्तु उसको नीतिमय व्यवसाय नहीं मिलता है, दरिद्रता उसको घेर लेती है, परिवार का पालन करना दुष्कर हो जाता है... ऐसी परिस्थिति में यदि उसको नीतिमत्ता छोड़नी पड़ती है, अनीति के मार्ग पर चलना पड़ता है...तो कोई बड़ा अपराध वह नहीं करता है। अनीति के मार्ग पर चलते हुए भी उसका लक्ष्य तो नीतिमार्ग का ही बना रहता है।
सभा में से : अनीति के मार्ग पर चलते-चलते यदि आदत बन गई तो? जहाँ हमें लाभ होता है, वहाँ हम चिपक जाते हैं।
महाराजश्री : यदि जागृति नहीं होगी तो यह होने का ही है। भीतर से जाग्रत तो रहना ही पड़ेगा। कभी मार्ग में कांटे होते हैं, दूसरा मार्ग नहीं होने से, उसी मार्ग पर, कांटों पर पैर रखकर चलना पड़ता है... चलते हैं परन्तु कितनी सावधानी से चलते हैं! एक भी कांटा पैरों में चुभ न जाय ।
वैसे, परिस्थितिवश अनीति के मार्ग पर चलना पड़े, परंतु भीतर की जागृति वैसी होनी चाहिए कि अनीति का मार्ग प्रिय न लग जाय और नीतिमार्ग की उपेक्षा न हो जाय ।
यदि दृढ़ मनोबल होता है तो मनुष्य कैसी भी अभावग्रस्त स्थिति में अनीति का आश्रय नहीं लेता है। परन्तु ऐसे लोगों की शारीरिक आवश्यकताएँ अल्प होती हैं । पारिवारिक आवश्यकताएँ सीमित होती हैं और लोभ-तृष्णा से वे मुक्त होते हैं। 'अनीतिजन्य कोई सुख नहीं चाहिए,' ऐसा उनका दृढ़ संकल्प होता
अनपढ़ औरत की ईमानदारी :
राजस्थान में फलोदी एक छोटा-सा शहर है। हमारा वहाँ जब चातुर्मास था, तब की एक दिलचस्प घटना है! हम जहाँ रहते थे, वहाँ पास ही के कम्पाउंड में आयंबिल भवन था। चातुर्मास में अनेक स्त्री-पुरुष आयंबिल की तपश्चर्या करते रहते हैं। एक दिन, दोपहर को एक बजे आयंबिल भवन की
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