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प्रवचन- ७३
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व्यापार तो किया नहीं है ! चोरी करे वैसा आदमी भी नहीं है... तो क्या उसको जमीन में से खजाना मिला होगा ? अवश्य ऐसा ही लगता है... खजाना मिल गया लगता है।'
'मुझे अचानक प्राप्त हुई धनाढ्यता के विषय में लोग क्या सोचेंगे... और यदि यह बात राजा के पास गई, तो राजा क्या करेगा?' यह विचार देद को नहीं आया। लोगों की विचारधारा से मनुष्य को परिचित रहना चाहिए, अन्यथा निष्प्रयोजन आफत आ सकती है। एक विषय का पुण्योदय होने से सभी विषयों का पुण्योदय नहीं हो जाता! पुण्योदय और पापोदय साथ-साथ चलते हैं, अपने जीवन में !
पुण्य और पाप की पटरी पर जीवन की गाड़ी :
० किसी को धन-धान्य का पुण्योदय होता है, तो शरीर के आरोग्य का पुण्योदय नहीं होता, शरीर रोगी होता है...!
● किसी को पुण्योदय से शरीर स्वस्थ और नीरोगी होता है, तो धन-धान्य का पापोदय होता है !
● किसी को पुण्योदय से काफी धन-संपत्ति मिलती है, तो पापोदय से परिवार का सुख नहीं मिलता ।
● किसी को पुण्योदय से परिवार अच्छा मिलता है, तो पापोदय से धनसंपत्ति नहीं मिलती!
● किसी को पुण्योदय से धन-संपत्ति मिलती है... तो पापोदय से शत्रु बहुत होते हैं!
किसी के पुण्योदय से मित्र बहुत होते हैं, तो पापोदय से धन-संपत्ति नहीं मिलती...!
० संसार में कर्मों की ऐसी विचित्रता देखने को मिलती है । पुण्योदय थोड़ा और पापोदय ज्यादा। इसलिए सुख थोड़ा और दुःख ज्यादा। कब पुण्योदय समाप्त हो जाय और पापोदय शुरू हो जाय - वह भी जीव नहीं जान सकता है। इसलिए पुण्योदय पर भरोसा नहीं रखना चाहिए। कर्मों पर भरोसा रखना ही नहीं है ।
मेरे
देद ने अपने पुण्योदय पर भरोसा कर लिया । उसने माना होगा कि 'अब दुःख चले गये, मैं सुखी हो गया...।' उसने यह नहीं सोचा कि देश और काल बदलते रहते हैं । देद का दरिद्रता का काल चला गया था, संपत्ति का
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