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प्रवचन-८४
० जिस समय व्यापार करने का मौसम हो, उस समय व्यापार करो।
० जिस समय दूसरों को क्षमा देनी हो, उस समय क्षमा दो। समय को परखना जरूरी होता है : ___ समय को परखने की पैनी दृष्टि आपके पास होनी चाहिए। कार्यसिद्धि के लिए समय को परखना बहुत ही आवश्यक होता है। समय बीत जाने के बाद दिये हुए दान का महत्त्व नहीं रहता है। समय बीत जाने के बाद कितनी भी सेवा करो, उस सेवा का कोई महत्त्व नहीं रहता है। समय बीत जाने के बाद व्यापार करोगे तो मुनाफा तो दूर रहा, नुकसान करोगे। धर्मपुरुषार्थ और कामपुरुषार्थ भी उचित समय में करने का है।
समय का पर्यालोचन अत्यन्त निपुण बुद्धि से करना है। टीकाकार आचार्य श्री ने 'अत्यन्त निपुण बुद्ध्या च' कहा है। जिस मनुष्य के पास ऐसी बुद्धि होगी, वही समय का सम्यक् पर्यालोचन कर सकेगा, दूसरा नहीं। कृपणता और मितव्ययता में अंतर :
इस विषय में एक सुनी हुई कहानी कहता हूँ।
एक श्रीमन्त सेठ थे। निपुण बुद्धिवाले थे। लड़के की शादी की। पुत्रवधू भी श्रीमन्त घर की लड़की थी। एक दिन पुत्रवधू ने अपने ससुर की विचित्र हरकत देखी। जमीन पर कुछ तैल के बिन्दु गिर गए थे। सेठ अपनी अंगुली से तैल-बिन्दुओं को अपने जूते पर लगा रहे थे।
नई-नई पुत्रवधू ने सोचा : 'क्या मेरे ससुर इतने कंजूस हैं? ऐसा क्यों किया उन्होंने अथवा उनकी क्या दूसरी कोई दृष्टि होगी?' थोड़े दिन तो
उसको चिन्ता बनी रही, बाद में उसने वास्तविकता का पता लगाने को सोचा। ___ एक दिन उसने अपनी सास से कहा : 'मुझे आज सरदर्द हो रहा है... मैं सो जाती हूँ।' सास ने उसको सोने दिया, परन्तु शाम तक जब वह उठी ही नहीं तो सास ने कहा : 'क्या ज्यादा सरदर्द हो रहा है?' उसने कहा : 'हाँ, मुझे बहुत ज्यादा सरदर्द है।' शाम को दुकान से जब सेठ आये, उनको मालूम हुआ कि पुत्रवधू को ज्यादा सरदर्द है, वे पुत्रवधू के पास गये। 'बेटी, क्या पहले भी तुझे ऐसा सरदर्द कभी होता था?' 'हाँ पिताजी, पहले भी कभी-कभी होता था।'
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