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प्रवचन-03
१०९
१८. मानवता से असीम प्यार करो। मनुष्य की सहज-स्वाभाविक बुराइयों को देखकर भी स्नेह कम मत करो। प्रत्युत्तर में आपको सभी से स्नेह-सौहार्द्र प्राप्त होगा।
१९. अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए किसी प्रकार की गंदी सौदेबाजी मत करो।
२०. सफलता प्राप्त करने के लिए अनैतिकता का सहारा मत लो। मित्रता का गला मत घोंटो।
२१. विनोदप्रियता, आपके स्वभाव का अंग बना लो। गंभीर से गंभीर प्रसंगों पर अपनी सहज विनोदप्रियता से वातावरण को हल्का बनाये रखो।
२२. वाणी में कटुता एवं दूसरों का उपहास नहीं होना चाहिए। वाणी को स्वाभाविक बनाये रखो।
२३. प्रवृत्ति सर्जनात्मक करो, ध्वंसात्मक नहीं।
२४. भव्य निर्माण की योजनाएँ बनाते रहो। कुछ प्रेरणा के स्रोत! ___ धर्म-अर्थ और काम-तीन पुरुषार्थ में जिन्होंने कल्पनातीत सफलताएँ प्राप्त की हैं-उनके जीवन में आप इन २४ बातों में से बहुत-सी बातें देख पायेंगे। सफल मनुष्यों के जीवनचरित्र पढ़ने पर ये बातें पढ़ने को मिलेंगी। उनमें से भव्य प्रेरणाएँ मिलेंगी।
१. मालवा के महामंत्री पेथड़शाह का धर्मपुरुषार्थ सुना है न? श्री धर्मघोषसूरिजी के समागम से उन्होंने अपने जीवन को कैसा धर्ममय बनाया था? धर्म का प्रसार भी कैसा अद्भुत किया था?
२. गुर्जरेश्वर कुमारपाल के धर्मपुरुषार्थ की बातें तो मैं कई बार कह चुका हूँ। उन्होंने कैसी अपूर्व धर्माराधना और धर्मप्रभावना की थी।
३. पार्मा-इटली के पाइट्रीनुक्क्री ने अपने बच्चों को धार्मिक बनाने के लिए आरम्भ से ही प्रयत्न किया था। उसकी सात संतानें थीं। इनमें से एक ईसाई पादरी, तीन बौद्ध भिक्षु बने और तीन धर्मोपदेश का काम करने लगे। सभी आजीवन ब्रह्मचारी रहे और धर्मकार्यों में संलग्न रहे। यह उनके पिता की, धर्मपुरुषार्थ में उन्नति करने की लगन और श्रद्धा का परिणाम था।
४. वेस्लेस (फ्रान्स) का 'विक्टर चाओ सीमेन्ड, एक ऐसे परिवार में
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