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प्रवचन-८३
१०८ प्रदान, सहयोग, समर्थन...वगैरह का भी विशेष महत्त्व रहता है। प्रगति और प्रसन्नता तभी संभव हो सकती है। तीनों पुरुषार्थ में सफलता पाने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण बातें बताता हूँ, ध्यान से सुनें
१. वस्तुस्थिति को स्पष्ट समझकर उसके साथ अधिक सम्बन्ध स्थापित करें। २. किसी के भी साथ पूर्वग्रह से ग्रसित न रहें। पूर्वग्रहों से शीघ्र मुक्त बनें।
३. हर परिस्थिति को देखकर, समझकर, बिना विचलित हुए, अपने कार्य की रूपरेखा निर्धारित करें।
४. कोई भी शंका या अवरोध किसी काम में आने पर, उसे सुखद चुनौती के रूप में स्वीकार करते रहें।
५. किसी उपयोगी व्यक्ति का, उसके स्वभाव की विचित्रता के बावजूद स्वीकार करें।
६. अतिवादियों जैसी 'पूर्ण पुरुष' की तलाश या अपेक्षा मत रखो।
७. मनुष्य को कमजोरियों का पुतला मानकर, उस पर दुःखी मत हों, परन्तु उनको सुधारने का प्रयत्न करें।
८. अपने जीवन में निरन्तर आते रहनेवाले कठिन संघर्षों से व्यथित नहीं होना । ९. अपनी बाह्य एवं आन्तरिक जिन्दगी में सरल बने रहें, बनावट से दूर रहें।
१०. किसी भी बात की अभिव्यक्ति में शब्द एवं भाव संतुलित रखें। अभिव्यक्ति में व्यंग नहीं होना चाहिए, उग्रता नहीं होनी चाहिए।
११. कोलाहल से दूर रहें, फिर भी समाज के प्रत्यक्ष संपर्क में रहें।
१२. एकान्तवास प्रिय होते हुए भी, समाज की समस्याओं को सुलझाने के लिए चिन्तन करते रहें।
१३. अपनी इच्छाएँ स्वार्थपरक नहीं बनने दो, उद्देश्यपरक होने दो। स्वार्थ को परमार्थ में बदल दो। __१४. जब आपके सामने दूसरों की समस्याएँ आयें तब आप अपनी समस्याओं को भूल जायें।
१५. स्वयं में दृढ़ बनकर अपना स्वतंत्र वातावरण निर्माण करो।
१६. ज्यादा काम करने पर थको मत | सदैव जवानों जैसी मस्ती, ताज़गी एवं उत्साह बनाये रखो।
१७. प्रकृति के अधिक समीप रहो। प्रकृति में व्याप्त सौंदर्य को अधिक सूक्ष्मता से अनुभव करो।
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