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प्रवचन-५६ । इतने में पास वाली गली में से बड़े बड़े छूरे लेकर, दो मुसलमान दौड़ते आये और इस मुसलमान पर वार कर दिया...'काफिर, तू यहाँ से जिन्दा नहीं जायेगा....!' बचने गया था हिन्दू से, मारा गया अपने ही जाति भाई से! यदि उसने अपने गले में हिन्दू देवता का ताबीज नहीं पहना होता तो कम से कम, मुसलमान से तो नहीं मरता! वस्त्र-परिधान में औचित्य का पालन करो :
वस्त्र-परिधान के विषय में, इस ग्रन्थ के टीकाकार आचार्यश्री ने जो पाँच बातें बताई हैं, वे बहुत औचित्यपूर्ण हैं और लाभदायी हैं। उन्होंने पहली बात बताई है वैभव के अनुरूप वस्त्र-परिधान । इसका अर्थ यह होता है कि आप श्रीमन्त हैं तो आपको गरीब जैसे वस्त्र नहीं पहनने चाहिए। यदि आपको एक सद्गृहस्थ के रूप में जीवन जीना है तो यह बात है। आप श्रीमन्त हैं तो आपको वैसे वस्त्र-परिधान करने चाहिए कि आपका व्यक्तित्व अभिमान की अभिव्यक्ति न करे। आपको अपनी उम्र के हिसाब में कपड़े पहनने चाहिए | आप युवक हैं और आप अपने पिता जैसे कपड़े पहने तो भी अनुचित है! हाँ, उम्र के साथ साथ आपके व्यवसाय का भी विचार होना चाहिए। आप 'डॉक्टर' हैं, आप वकील हैं, आप न्यायाधीश हैं....आप कोई कंपनी के 'सेल्समेन' हैं, आप एक व्यापारी फर्म के मालिक हैं, तो आपको अपने व्यवसाय के अनुरूप वेश पहनना होगा। उपहास हो वैसा वेश नहीं पहनना चाहिए | कहाँ कैसे कपड़े पहनना....जरा सोचो? :
आप कॉलेज में पढ़ने जाते हो और धोती-कोट और गांधी केप पहनकर जाओगे तो? हँसी ही होगी न? और, आपको परमात्मा के मंदिर में पूजा करने जाना हो, वहाँ पर पेन्ट-शर्ट पहनकर जाओगे तो? उपहास ही होगा न? ___ आप अपनी आर्थिक स्थिति का खयाल करो। आप अपनी उम्र का और व्यवसाय का विचार करो। आप अपने समाज का, धर्म का और देश का विचार करो। देश के 'क्लाइमेट' का विचार करना चाहिए। अपना देश ज्यादा गर्म है। इस देश के लिए बारह महीने पेन्ट या स्कर्ट जैसे चुस्त कपड़े सर्वथा अनुचित है। गर्म देश में चुस्त कपड़े पहनने से शरीर को नुकसान होता है।
मैंने एक कॉलेज में, प्रवचन के दौरान लड़कों से पूछा था कि आप लोग अभी जो चुस्त पेन्ट पहनते हो, वह फैशन कहाँ से आया है? चुस्त पेन्ट क्यों पहनते हो?' एक भी लड़के ने मेरे प्रश्न का जवाब नहीं दिया था। चूंकि
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