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प्रवचन-५६ आना चाहिए, यह विवेक है क्या? कोई मर्यादा का खयाल है क्या? आप लोग किसलिए धर्मस्थानों में आते हो, यहाँ आकर आपको क्या करना है, क्या पाना है-इस बात का खयाल है क्या? इधर मन्दिरों में कोई मेला तो लगता नहीं! इधर धर्मशाला में-उपाश्रय में कोई पार्टी का आयोजन तो होता नहीं! यहाँ पर क्यों एक्टर बनकर और एक्ट्रेस बनकर आते हो? यहाँ भी सदगृहस्थ और सन्नारी बनकर नहीं आ सकते? दुर्भाग्य है अपना और अपने समाज का । न आप लोग किसी का अनुशासन मानते हो, न आप स्वयं उबुद्ध बनते हो।
आप एक बात मत भूलना कि जैसे कपड़े पहनेंगे, आपके मन पर वैसा प्रभाव पड़ेगा। जीवन की हर क्रिया का संबंध मन के साथ है। यदि आप संयम की दृष्टि से वस्त्र परिधान करेंगे तो आपका मन संयम में रहेगा। यदि आप औद्धत्यपूर्ण वस्त्र-परिधान करेंगे तो आपका मन संयम में नहीं रहेगा। आप अनुभव करके देखना! एक दिन धोती पहनकर बाहर घूमने जाओ और एक दिन पेन्ट पहनकर बाहर जाओ। आप अपनी मनःस्थिति का अध्ययन करना। एक दिन एक महिला साड़ी पहनकर बाहर जाय और एक दिन स्कर्ट पहनकर या मेक्सी पहनकर बाहर घूमने जाय-बाद में वह यदि अपने मानसिक विचारों का अध्ययन करेगी तो पता लगेगा कि विचारों में कितना फर्क पड़ता है।
'मेरे मन में पवित्र विचार ही रहने चाहिए,' यह निर्णय है आपका? कौन बचाये उनको? :
सभा में से : कैसे रहें पवित्र विचार? मेरी ऑफिस में, जहाँ मैं सर्विस करता हूँ, ऐसी लड़कियाँ आती हैं सर्विस करने के लिए कि उनकी वेश-भूषा देखकर ही मन गन्दा हो जाता है।
महाराजश्री : इसलिए कहता हूँ कि ऐसे स्थानों में नौकरी ही नहीं करनी चाहिए कि जहाँ शील और सदाचार को खतरा हो। जब परस्त्री के प्रति अनुराग पैदा हो, तब ही सावधान हो जाना चाहिए। चूंकि सर्विस करनेवाली कुछ लड़कियाँ तो Extra एकस्ट्रा इन्कम' करने के लिए कुछ पुरुषों को अपने मोहपाश में फँसाने का अवसर ही देखती रहती हैं। मैत्री के नाम पर भोगवृत्ति ही पुष्ट होती जाती है और एक दिन पतन के खड्डे में गिर जाते हैं | सर्विस करनेवाली लड़कियाँ और महिलाएँ ज्यादातर ऐसी ही वेश-भूषा बनाती हैं कि दूसरों की दृष्टि उन पर जाये ही। अपने बॉस को खुश करने के लिए,
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