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प्रवचन-५६
और दोनों एक साथ हँस पड़े। रामशास्त्री सादगी के कितने आग्रही थे, वह बात आप समझे न? क्या इससे उनका व्यक्तित्व गिर गया था? समाज में उनकी इज्जत कम हो गई थी? आज तो यह भी एक भ्रमणा व्यापक बनी हुई है कि सुन्दर और मूल्यवान् वस्त्र पहनने से व्यक्तित्व प्रभावशाली बनता है।' क्या जमाना है?
मेरा एक परिचित लड़का कॉलेज में पढ़ता है। एक बार अपने एक दोस्त को लेकर मेरे पास आया। कुछ धर्मचर्चा हुई। उस मित्र को जाना था इसलिए वह चला गया। मैंने अपने परिचित लड़के से पूछा : 'तेरा मित्र श्रीमंत परिवार का लड़का दिखता है। उसने कहा : 'नहीं, नहीं, उसके पिताजी तो गरीब हैं, दूसरे श्रीमन्तों की सहायता से वह पढ़ रहा है।'
मैंने कहा : 'क्या इतने बढ़िया किस्म के कपड़े भी वह दूसरों की सहायता से पहन रहा है? इतना मूल्यवान् 'रिस्ट वाच' भी दूसरों की सहायता से पहन रहा है?'
उसने कहा : 'महाराज साहब, आपके सामने क्या बात करूँ? वह एक लड़की के चक्कर में है। उसके सामने वह यह बताना चाहता है कि 'मैं श्रीमन्त पिता का लड़का हूँ।' आजकल ऐसी धोखेबाजी चल रही है। दानवीरों के दान का गैरलाभ उठाया जा रहा है। अलग-अलग फैशन के दस-बीस सूट रखना तो मामुली बात हो गई है।'
लड़कियों की दृष्टि में लड़कों को सुन्दर दिखना है और लड़कों की दृष्टि में लड़कियों को अपने आपको सुन्दर दिखाना है! सुन्दर, श्रीमन्त और शिक्षित दिखने के लिए वस्त्र परिधान किया जाता है। कुकर्म और कुरूपता को ढंकने के लिए साजसज्जा की जाती है। स्कूल-कॉलेज में और सिनेमा-नाटक में, होटल-रेस्टोरन्ट में और क्लबों में, गार्डनों में और शादी-समारंभों में तो वस्त्रप्रदर्शन और देहप्रदर्शन की स्पर्धाएँ देखने को मिलती ही होंगी। मंदिरों में मेला लगता है... क्या....??
धर्मस्थानों में और धार्मिक प्रसंगों में भी ऐसी प्रदर्शनियाँ देखने को मिलती
धर्मस्थानों में आनेवाले स्त्री-पुरूषों को, कैसे वस्त्र पहनकर धर्मस्थानों में
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