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प्रवचन-५३ तो होगा ही, साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक लाभ भी होगा। आपकी विश्वसनीयता बढ़ जायेगी, आपकी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ जायेगी।
ग्रन्थकार ने इस गुण को 'सामान्य धर्म' की श्रेणी में रखा है, वास्तव में देखा जाय तो विशेष गुणों की आधारशिला है यह गुण! विशेष धर्माराधना करने वालों में भी यह गुण क्वचित् ही मिल सकता है। यदि गृहस्थ धर्म की आराधना 'धर्मबिंदु' ग्रंथ के आधार पर की जाय तो सम्भव है कि धर्मक्षेत्र में अपूर्व क्रान्ति हो जाय।
आठवें सामान्य धर्म का विवेचन आज पूर्ण करता हूँ। आज बस, इतना ही।
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