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प्रवचन-५३ है! जिसमें वह दोष देखेगा, उसके प्रति वह अरूचि, तिरस्कार और नफरत करेगा। नहीं होगी उसमें मैत्रीभावना, नहीं होगी प्रमोदभावना! न वह किसी का मित्र बन सकेगा, न वह किसी का प्रशंसक बना रहेगा!
दोषदर्शन की आदतवाला मनुष्य, धर्मगुरुओं में भी दोष देखेगा! यदि वह दीक्षा भी ले लें, साधु बन जायं, तो भी दोषदर्शन करेगा! अपने सहवर्ती साधुओं के दोष देखेगा! गृहस्थों के दोष देखेगा! गुरूजन के भी दोष देखेगा! दोष देखना और द्वेष करना उसका जीवन-कार्य बन जायेगा! ऐसे व्यक्ति अशान्ति, क्लेश और संताप से भर जाते हैं।
ऐसे व्यक्तियों के जब दूसरे लोग दोष देखते हैं, तब वे रोष से तमतमा जाते हैं। क्रोध से बौखला जाते हैं। लड़ने को तैयार हो जाते हैं! कोई उनको समझा नहीं सकता। समझने की तो ऐसे लोगों ने कसम खायी होती है। ___ दोषदृष्टिवाले लोग अपने पारिवारिक जीवन को भी अशान्तिमय और क्लेशमय बनाते हैं। दोषदर्शन के साथ दोषानुवाद करने की आदत यदि जुड़ी हुई होती है, तभी तो परिवार में रोजाना झगड़े होते रहते हैं। ईर्ष्या, चुगली वगैरह दोष भी, दोषदर्शन के साथ पनपते रहते हैं।
गुणवान् पुरुषों के साथ गाढ़ प्रीति करने के बजाय, उनके ही दोष देखकर, उनको बदनाम करने का काम वह करेगा। भगवान महावीर के साथ कुछ वर्ष तक रहकर गोशालक ने क्या किया? भगवान महावीर से ही 'तेजोलेश्या' की शक्ति पायी और उस शक्ति का प्रहार महावीर पर ही किया! 'मैं ही सच्चा सर्वज्ञ हूँ' ऐसा कहता रहा। भगवान महावीर का अवर्णवाद करता रहा। प्रेम के बिना परिग्रह काहे का?
गुणवान् क्या, गुणों का भंडार मिल जाय, परन्तु उसका परिग्रह होना चाहिए न? प्रेम के बिना परिग्रह नहीं हो सकता है। दोषदर्शन प्रेम को जला देता है! हाँ, कभी किसी गुण से आकर्षित होकर, गुणवान् पुरुषों से सम्बन्ध हो भी जाय । परन्तु ज्यों कोई दोष देखा, उस गुणवान् पुरुष में, प्रेम में आग लगा देगा वह मूर्ख, और वहाँ से भाग जायेगा!
गुणश्रेष्ठ पुरुषों का मात्र संपर्क ही नहीं करने का है, उनका परिग्रह करने का है! उनके प्रति प्रगाढ़ स्नेह बनाये रखना है। इससे आपको धार्मिक लाभ
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