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प्रवचन- ५१
२८
कहाँ पिता और कहाँ पुत्र! बारह-तेरह घंटे व्यवसाय में व्यतीत हो जायें और ६/७ घंटे सोने में पूरे हो जायें.... २/३ घंटे खाने-पीने में चले जाये और २/३ घंटे घर के व्यवहार में चले जायें.... फिर वह धर्म आराधना कब करेगा? यदि एक दो धर्मक्रियाएँ करेगा तो भी कैसे करेगा ? सप्ताह में एक दिन होता है छुट्टी का! एक दिन में घर के अनेक काम करने के होते हैं, स्वजन-परिजनों से मिलना-जुलना होता है, घरवालों को घूमाने - फिराने ले जाना होता हैं.... । उस दिन भी वह कौन-सी धर्म आराधना कर सकता है ?
यदि आप लोग मेरा कहा मानो तो, मैं तो आप लोगों को गाँव में वापस जाने का ही उपदेश दूँगा। गाँवों में छोटे-छोटे व्यवसाय हो सकते हैं। कई प्रकार के गृहउद्योग भी हो सकते हैं। बेकारी का प्रश्न भी हल हो सकता है।
सभा में से : हम गाँवों में जायेंगे तो आप भी गाँवों में पधारेंगे न? आजकल साधुपुरुष भी बड़े शहरों में ज्यादा पधारते हैं!
महाराजश्री : आप लोग गाँवों में चले जायें... मैं गाँवों में चातुर्मास करूँगा! आप लोग गाँव खाली करके शहर में चले जायें तो साधु लोग गाँवों में जायेंगे क्या ? क्यों जायेंगे? हम लोगों को बड़े शहरों में इसलिए जाना पड़ता है, क्योंकि लाखों की तादाद में जैन परिवार बड़े शहरों में बस गये हैं । उन लाखों परिवारों को धर्मआराधना में जोड़ने के लिए, उनकी धर्मश्रद्धा को बनाये रखने के लिए साधुपुरुषों को शहरों में आना पड़ता है। जिस समय गाँवों में जैनपरिवार अच्छी तादाद में बसे थे, उस समय गाँवों में साधुपुरुष चातुर्मास करते थे । चातुर्मास के अलावा भी लम्बे समय तक स्थिरता करते थे।
गाँव में स्वास्थ्य अच्छा रहता है और सादगी से जीवन - निर्वाह हो सकता है । अनेक प्रकार के पापों से बचा जा सकता है।
उपद्रव की संभावना होने पर स्थानांतर कर लेना चाहिए :
सभा में से : क्या गाँव में उपद्रव नहीं हो सकते हैं?
महाराजश्री : हो सकते हैं, परन्तु कम मात्रा में होते हैं। कैसे-कैसे उपद्रव हो सकते हैं.... वह भी सुन लो ।
● अतिवृष्टि हो सकती है।
● पास में नदी हो तो बाढ़ आ सकती है।
● अकाल पड़ सकता है।
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