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प्रवचन-५१
२७ ० गाँवों में सट्टा नहीं खेला जाता है। बड़ा धंधा नहीं किया जाता
है....ऐसी-ऐसी अनेक बातें, आप लोगों के दिमाग में हैं! कहिए, हैं
या नहीं? परन्तु यह भी सोचना कि ‘गाँवों में क्या-क्या है!' गाँवों में भी क्या मिलता है?
० गाँवों में शुद्ध हवा मिलती है, बड़े शहरों में तो हवा प्रदूषित हो गई है। ० गाँवों में शुद्ध पानी मिलता है, बड़े शहरों में पानी भी दूषित मिलता है! ० गाँवों में शुद्ध घी और दूध मिलता है। शहरों में मिलावट हो गई है। ० गाँवों में शान्ति से धर्मआराधना हो सकती है। ० गाँवों में परिवार के साथ जिया जा सकता है। शहरों में पारिवारिक
जीवन छिन्न-भिन्न हो जाता है। बम्बई-विलेपार्ले में एक डॉक्टर रहते थे। हम वहाँ चातुर्मास व्यतीत कर रहे थे। एक दिन डॉक्टर के पिताजी से मैंने पूछा :
'महानुभाव, आपके सुपुत्र तो उपाश्रय में दिखते ही नहीं, कहाँ गये हैं?' उन्होंने कहा :
'महाराज साहब, मैं भी उसका मुँह सप्ताह में एक बार ही देख पाता हूँ! उसके बच्चे भी रविवार के दिन ही उसको मिल पाते हैं! क्योंकि वह सूर्योदय से पहले तो बम्बई के लिए रवाना हो जाता है, उस समय बच्चे सोये हुए होते हैं और जब रात को १० बजे वह वापस घर लौटता है उस समय बच्चे निद्राधीन हो गये होते हैं! कभी-कभी तो तीन दिन तक बम्बई में ही रहता है....घर आता ही नहीं है....।' ___कहिए, उसका पारिवारिक जीवन कैसा होगा? उस डॉक्टर की पत्नी को कितना असंतोष होगा? पति से असंतुष्ट नारी के जीवन में चरित्रहीनता आने में देरी नहीं लगती! अनुकूल संयोग बस, मिलना चाहिए, उसका पतन हुए बिना नहीं रहेगा। इस प्रकार काम-पुरुषार्थ में विफलता प्राप्त होती है। शहर छोड़ो और गाँवों की तरफ लौटो :
बम्बई जैसे बड़े नगरों में जहाँ रहने का होता हो दूर दूर बोरीवली....विरार तक, घाटकोपर और थाना तक, और व्यापार करने के लिए, नौकरी करने के लिए जाना पड़ता हो 'प्रोपर' बम्बई में या फोर्ट में। वैसे लोग प्रातः ८ बजे घर छोड़ते हैं और रात्रि में ९/१० बजे घर पहुँचते हैं! कहाँ पत्नी और कहाँ पति!
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