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प्रवचन-५०
२२ ० अभक्ष्य भोजन का और अपेय के पान का त्याग करो।। ० जितना हो सके उतना स्वाद लेना कम करो। ० रात्रिभोजन बंद करो। दिन में भी दो या तीन समय ही भोजन करो। ० होटल-रेस्टोरन्ट में खाना-पीना छोड़ दो। ० विकारोत्तेजक जमीनकंद आदि खाना छोड़ दो। ० हो सके उतना कम बोलो। ० ज्यादा हँसी-मजाक करना छोड़ो। ० प्रिय और हितकारी वचन ही बोलो। ० जब क्रोध या रोष में हों, तब मौन रहो। ० दिन-रात में कुछ घंटे मौन रहने का अभ्यास करो। ० तत्त्वचर्चा करो। ० जहाँ आपके प्रति प्रेम-आदर न हो, वहाँ मौन रहो। ० किसी की रहस्यभूत बातों को प्रकाशित मत करो।
अब स्पर्शेन्द्रिय के विषय में कुछ बातें बताता हूँ। स्पर्शेन्द्रिय-विजय :
यदि इस इन्द्रिय पर विजय पाना है तो सुखशीलता का त्याग करना होगा! तीन बातों में विशेष रूप से विवेक करना होगा।
१. वस्त्रपरिधान २. शयन ३. विजातीय-स्पर्श । पहली बात है वस्त्रपरिधान की । बहुत मूल्यवान और सुन्दर वस्त्रों का मोह छोड़ना होगा। अल्प मूल्य के और सादगीपूर्ण वस्त्र पहनने चाहिए। फैशनेबल वस्त्र नहीं पहनने चाहिए।
दूसरी बात है शयन की। यदि स्पर्शेन्द्रिय पर विजय पाना है तो मुलायम गद्दी पर सोना बंद करो। जमीन पर ऊनी या सूती वस्त्र बिछाकर सोया करो। बहुत मुलायम बिछौना नहीं रखना।
तीसरी बात है स्पर्श की। बहुत नाजुक और महत्त्वपूर्ण बात है यह । पुरूष को स्त्री-देह का स्पर्श भाता है, स्त्री को पुरूष-शरीर का स्पर्श भाता है। यह वृत्ति पशु-पक्षी और मानव में सहजरूप से होती है। देवों में भी यह वृत्ति होती है। परन्तु इस वृत्ति पर संयम होना नितान्त आवश्यक है। हालाँकि आज जीवन-व्यवस्था ही बिगड़ गई है। पारिवारिक और सामाजिक जीवन में संयम और विवेक जैसी कोई बात ही देखने को नहीं मिलती है। फिर भी, जिस
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