________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन-६३
१५६ माता-पिता के हृदय में मात्र वर्तमान जीवन की सुख-सुविधाओं का ही खयाल नहीं होना चाहिए, वर्तमान जीवन के साथ-साथ पारलौकिक हित की भी कामना होनी चाहिए। परलोक-दृष्टि से वर्तमान जीवन जीने की व्यवस्था जमानी चाहिए। ऐसी व्यवस्था तभी संभव हो सकती है जब एक-एक प्रवृत्ति के पारलौकिक फल का ज्ञान हो! 'मैं ऐसी प्रवृत्ति करूँगा तो परलोक में मुझे ऐसा फल मिल सकता है।' मानसिक विचारों के पारलौकिक फल होते हैं, वाचिक प्रवृत्ति के पारलौकिक फल होते हैं और कायिक प्रवृत्ति के भी पारलौकिक फल होते हैं। फल दो प्रकार के होते हैं : अच्छे और बुरे । दोनों प्रकार के फलों का ज्ञान होना चाहिए। प्रवृत्ति करते समय वह ज्ञान का प्रकाश बुझना नहीं चाहिए। इहलौकिक और पारलौकिक हित की प्रवृत्ति तभी सुचारु रूप से हो सकती है। ___ माता-पिता सर्व प्रथम स्वयं के और परिवार के आरोग्य की चिन्ता करते हैं। खाना-पीना और रहन-सहन उस प्रकार का होना चाहिए कि आरोग्य को क्षति न पहुंचे। ऋतुओं के अनुसार भोजन करना चाहिए। साथ-साथ अपनी प्रकृति को जानकर प्रकृति के अनुकूल भोजन करना चाहिए। परिवार को माता-पिता की ओर से ऐसा मार्गदर्शन मिलते रहना चाहिए। मन मलिन न हो इसके लिए सावधान रहें :
दूसरा खयाल करना है अपने और परिवार के मन का | मन बार-बार आर्तध्यान और रौद्रध्यान में चला न जाय, इसलिए जाग्रत रहना चाहिए। मन खेद, उद्वेग और दीनता से भर न जाय, इसलिए सतर्क रहना चाहिए। सब के मन प्रसन्न और प्रफुल्लित रहें, इसलिए भी जाग्रत रहना चाहिए | स्वयं के और परिवार के लोगों के मन पाप-वासनाओं से भर न जायँ, मलिन न हो जायँ, इसलिए सुयोग्य उपाय करने चाहिए। __ तीसरी चिंता करनी होती है आत्मा की । क्रोधादि दोषों का नाश होता जाय
और क्षमादि गुणों का विकास होता जाय, इसलिए तन को धर्मप्रवृत्ति में और मन को धर्मध्यान में जोड़ने का प्रयत्न करते रहना चाहिए । इन्द्रियों के उन्मादों को एवं विकारों को शान्त रखने के लिए व्रत-नियम-तपश्चर्या वगैरह करते रहना चाहिए। मन के विचारों को शान्त व पवित्र बनाये रखने के लिए स्वाध्याय-ध्यान एवं परमात्म-भक्ति करते रहना चाहिए। तो सन्तान अपराधी माने जायेंगे :
संसार के कर्तव्यों को निभाते हुए माता-पिता यदि इस प्रकार इहलौकिक
For Private And Personal Use Only