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प्रवचन-५९
जब मेरे पिता को मेरे जीवन का खयाल आया, उन्हें घोर आघात लगा और वे मर गये। मेरी माँ और बहन-दोनों मुझे समझाते रहे, परन्तु मैं अन्धेरी दुनिया में से बाहर नहीं निकल सका। इतना ही नहीं, मैं पापों में ज्यादा डूबता गया। माँ को जितने रुपये चाहिए उतने रुपये देता रहता था। बेचारी माँ को मेरे दुष्कृत्यों का पूरा खयाल ही नहीं था। वह नहीं जानती थी कि उसका बेटा हत्यारा बना है.... वह नहीं जानती थी कि उसका लाड़ला वेश्यागामी बना है.... वह नहीं जानती थी कि उसका पुत्र शराबी और बदमाश बना है। मैंने उसको इतना ही बताया था कि 'मैं स्मगलिंग तस्करी के धन्धे में हूँ, इसलिए मुझे ज्यादा समय घर से बाहर रहना पड़ता है। पुलिस से दूर रहना पड़ता है वगैरह ।' मैं नहीं चाहता था कि मेरी माँ को और बहन को मेरे पापों का खयाल आ जाय । क्योंकि मेरे दिल में माँ और बहन के प्रति अपार स्नेह था।' युवक की आँसूभरी मजबूरी : ___ मैंने उस युवक से पूछा : 'यदि तेरे दिल में माँ और बहन के प्रति इतना प्यार था तो तुझे उनके लिए भी इन घोर पापों का त्याग करना चाहिए था न? माँ और बहन को दुःख हो वैसा नहीं करना चाहिए था न?'
उसने कहा : 'आपका कहना सही है। मेरी मजबूरी थी। यदि मैं उस बदमाश की टोली को छोड़ता तो मुझे कारावास में बन्द होना पड़ता अथवा जिन्दगी से हाथ धोना पड़ता। चूंकि मैं अपराधी था, मैंने हत्या की थी! मेरे साथी मुझे पुलिस के हवाले कर देते अथवा मेरी हत्या कर देते!'
परन्तु एक दिन ऐसा आया ही कि, मुझे मेरी टोली के लोगों से लड़ना पड़ा। क्योंकि उनमें से दो व्यक्तियों ने मेरी अनुपस्थिति में मेरी बहन से दुर्व्यवहार करने का प्रयास किया था। मैंने उन दोनों को यमराज के पास पहुँचा दिया और मेरे सरदार को कह दिया : 'अब मैं स्वयं पुलिस के पास जाकर मेरे अपराध कह दूंगा.... चाहे वे लोग मुझे फाँसी पर लटका दें....।'
सरदार ने कहा : 'पुलिस के पास जाने की जरूरत नहीं है, तू जायेगा तो भी पुलिस तुझे सजा नहीं करेगी... इसलिए अब तू घर पर चला जा और अपनी बहन की शादी कर दे । तुझको जॅचे वह धन्धा करना । मेरे लायक कभी कोई काम हो तो आ जाना मेरे पास ।'
मैंने सरदार के पैर पकड़ लिये। मेरी आँखों में से आँसू बहने लगे | मैं घर पर आ गया | मैंने पहला निर्णय किया शराब को नहीं छूने का | मेरी वजह से
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