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प्रवचन- ५९
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लिए भूल जाना, तनावमुक्ति का सच्चा उपाय नहीं है । तनाव पैदा ही न हो, वैसी जीवन-व्यवस्था होनी चाहिए। आज तो मनुष्य की जीवन-व्यवस्था ही नहीं है! अव्यवस्था, अस्तव्यस्तता और अराजकता जीवन के पर्याय बन गये हैं ।
शान्त, स्वस्थ और प्रसन्न जीवन वही मनुष्य जी सकता है कि जो अपने मन को संतुलित रख सकता है। नशा करनेवालों का मन संतुलित नहीं रहता है। उनकी विचारशक्ति क्षीण होती है। इससे उनका पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन बिगड़ता है। अपने उचित कर्तव्यों के पालन में समर्थ नहीं बन पाते हैं। उनके मानसिक और पारिवारिक तनाव बढ़ते जाते हैं। शरीर में रोग भी बढ़ते हैं ।
तनावों से मुक्ति पाने के लिए सत्पुरूषों का समागम, धर्मग्रन्थों का अध्ययन, योगाभ्यास और प्रकृतिसुन्दर गाँवों में निवास करना चाहिए । परमात्मश्रद्धा को दृढ़ करनी चाहिए। परमात्मश्रद्धा से चिन्ताएँ, उलझनें, प्रतिकूलताएँ.... सब दूर होती हैं । साथ साथ सत्पुरुषों का समागम होने से परमात्मश्रद्धा निर्बल नहीं बनती है। गुरूजनों का मार्गदर्शन लेकर धर्मग्रन्थों का अध्ययन करने से और योगाभ्यास करने से तन और मन स्वस्थ, शान्त और प्रफुल्लित होते हैं।
मनुष्य को अपना दैनिक कार्यक्रम ही ऐसा बनाना चाहिए कि उसका दिमाग तनावग्रस्त ही न बनें ।
मन पर निमित्तों का असर मत होने दो :
सभा में से: परिवार के निमित्त, समाज के निमित्त और व्यापार के निमित्त भी तनाव पैदा होते हैं न?
महाराजश्री : उन निमित्तों का यदि आप पर असर होता होगा, तो ही तनाव पैदा होंगे। उन निमित्तों का आप पर असर ही न हो, वैसा आपका मनोबल होना चाहिए । संसार में निमित्त तो मिलते ही रहेंगे...अपन को उन निमित्तों से बचना होगा। अपने दिमाग पर उन निमित्तों का असर नहीं हो, वैसी मनःस्थिति का निर्माण करना होगा। वह निर्माण होगा सत्पुरूषों के समागम से। तत्त्वज्ञान के ग्रन्थों के अध्ययन से, योगाभ्यास से और परमात्मश्रद्धा से । यदि तनावमुक्ति का यह मार्ग नहीं लिया और नशे का मार्ग लिया तो जीवन बरबाद हो जायेगा ।
एक युवक का ऐसे ही जीवन नष्ट हो गया, कि जो धनी परिवार का था ।
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