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प्रवचन-५८
परिधान के कोई नियम ही नहीं रहे । अंग्रेजों की वेश-भूषा सारे देश में व्यापक बनती चली। जिसको जो पसन्द आये वह वेश-भूषा होने लगी। कोई विरोध नहीं, कोई आक्रोश नहीं। गुजराती मनुष्य पंजाब की वेश-भूषा कर सकता है और पंजाबी गुजराती पद्धति का वस्त्र परिधान कर सकता है । वस्त्र - परिधान के विषय में धर्मशास्त्रों के आदेश कौन मानता है? सिनेमा के एक्टर-एक्ट्रेसों की वेश-भूषा ही निर्णायक बन गई है।
कम से कम धर्मस्थानों में तो विवेक रखो :
वस्त्र-परिधान अब कोई देशाचार नहीं रहा है, स्वेच्छाचार बन गया है। अपने आपको सुन्दर दिखाने की दृष्टि से वस्त्र परिधान होने लगा है। अर्धनग्नता व्यापक बनती जा रही है। महिलाओं ने फैशन के नाम पर अपना देह-प्रदर्शन करना शुरू कर दिया है। पुरुषों ने भी मर्यादाओं को खयालों को भुला दिया है।
धर्मस्थानों में आनेवाले भी वस्त्र परिधान की मर्यादा को भूलते जा रहे हैं। इससे दुष्परिणाम भी देखने को मिलते हैं... परन्तु इस विषय में संघ और समाज ने आँखें बंद कर ली है । परमात्मा के मंदिर में परमात्मा की शर्म नहीं छूती है और उपाश्रय में गुरूजनों की शर्म नहीं छूती है। जैसे वस्त्र पहन कर होटल या सिनेमा देखने जाते हैं, वैसे वस्त्र पहनकर मंदिर और उपाश्रय में आते हैं।
आप लोग कुछ सोचेंगे या नहीं ? अब तो हद हो गई हैं....लड़कियों ने लड़कों के वस्त्र पहनने शुरू कर दिये हैं! पेन्ट और शर्ट! अभी इतना अच्छा है कि लड़कों ने लड़कियों के मिनी स्कर्ट पहनने शुरू नहीं किये हैं! हालाँकि बाल तो लड़कियों के जितने बढ़ाने लगे हैं !
मेरा आप लोगों से आग्रहपूर्ण निवेदन है कि आप मंदिर और उपाश्रय में अपने धर्म की मर्यादा को समझ कर आयें । यहाँ 'फैशन शो' का आयोजन नहीं करें। अपना धर्म त्याग और वैराग्य का उपदेश देता है । सादगी और नम्रता का उपदेश देता है । विनय और विवेक की प्रेरणा देता है ।
इस विषय में अपने जैन संघ के पूज्य आचार्यदेवों को गंभीरता से सोचकर संघ को उचित मार्गदर्शन देना चाहिए। मंदिर और उपाश्रय के ट्रस्टी लोगों को भी गंभीरता से सोचना होगा, अन्यथा इस प्रकार की बीभत्स और मर्यादारहित वेश-भूषा के परिणाम बुरे ही आयेंगे ।
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