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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६० प्रवचन-२९ था। सेठ के लड़के ने महिला से एक किलो घी माँगा | महिला के पास तोलने के लिए वजन नहीं था। उसने तराजू में सेठ की दुकान से लाया हुआ गुड़ रख दिया और एक किलो घी तोल दिया। लड़का घी लेकर घर पर आया। सेठ भी घर पर ही थे। उन्होंने अपने तराजू में एक किलो का वजन रखकर घी को तोला, घी दो छटांक कम था! सेठ ने लड़के से कहा : 'जा, उस औरत को बुला ला।' लड़का गया और उस औरत को बुला लाया। सेठ ने कहा, 'इतनी बेईमानी करती है मेरे साथ? एक किलो के पैसे लिये हैं और घी दो छटांक कम दिया?' औरत ने कहा : 'सेठ साहब, मेरे पास तो किलो का वजन ही नहीं है! मैंने तो आपकी दुकान से दिये हुए एक किलो गुड़ से तोलकर घी दिया है! जितना आपने गुड़ दिया, उतना मैंने घी दिया!' ___ सेठ के घर बैठे हुए मेहमान एक दूसरे के सामने देखकर हँसने लगे! सेठ का मुँह काला पड़ गया! वास्तव में सेठ ने ही बेईमानी की थी। उस महिला को गुड़ कम दिया था, पैसा पूरा एक किलो का लिया था! एक दूजे का शोषण करने की स्पर्धा हो रही है : ___'मत्स्यगलागल' न्याय जानते हो? एक मछली दूसरी मछली को खाती है तो उससे बड़ा मत्स्य उसको निगल जाता है! वैसा ही यहाँ बन रहा है। आप मानो कि कपड़े के व्यापारी हैं, आपके पास घी का व्यापारी कपड़ा खरीदने आया, आपने उसके साथ धोखा किया। अब आप घी खरीदने उसकी दुकान पर गये, उसने आपके साथ धोखा किया! अब आप घी खरीदने उसकी दुकान पर गये, उसने आपके साथ धोखा किया! फिर वह घी का व्यापारी अनाज खरीदने अनाज की दुकान पर गया, वहाँ उस व्यापारी ने बेईमानी की! वह अनाज का व्यापारी दवाई की दुकान पर गया तो दवाइयों के व्यापारी ने उसको लूटा! दवाइयों का व्यापारी जौहरी बाजार में गया...तो जौहरी ने उसको लूटा! चल रहा है न ऐसा विषचक्र आपके संसार में? इससे समग्र मानव-व्यवहार प्रपंचमय हो गया है। मानवता मृतप्राय हो गई है। एक दूसरे का शोषण करने पर उतारू हो गया है आज का आदमी। _ इससे आप लोगों को क्या मिल रहा है? आपने आत्मशान्ति खो दी, विश्वसनीयता खो दी, धर्मआराधना खो दी, पवित्र बुद्धि खो दी। कितना कितना खो दिया है, सोचा है कभी? परन्तु आपको तो ढेर सारे रूपये चाहिए! For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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